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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोक्षाभिलाषी वनी पोतानी मेळज संधाय (ते संधि) अथवा जे कर्मसंतति बन्धाय अने एक भवथी चीमा भत्रमा साथे जाय ते आम आठ प्रकारना कर्मसंततिरूप छे. तेने क्षय करी में (तीर्थकरोए) धर्म करो. तेज मोक्ष माग छे, पण बीजो नहीं. ते कहे छे जेम में GI | अहीं कर्मसमूह (संधि) तोड्यो. तेम अन्यत्र वीजा अन्य तीर्थी के कहेला मोक्षमार्गमां कर्मसंततिरूप संधि दुःक्षय ते दुःखे करीने ॥५८०॥ क्षय याय तेम के, कारण के ते असमीचीनपणे होवाथी तेमां खरा उपायनो अभाव छे. ॥५८०॥ जो जिनेश्वरे अहीं कर्म संधि तोड्यो छे, तो शुं समजवू ते कहे छे, जेम आज मार्गमा रहीने उत्कृष्ट तपश्चर्याक्डे में कर्म 8 खपाब्यु, तेज प्रमाणे अन्य मुमुक्षु पण संयम अनुष्ठानमा तथा तपमा पोतानी शक्तिने योजे, पण प्रमाद न करे, सुधर्मास्वामीए पोताना शिष्यने कहाँ, के आ प्रमाणे परम कारुण्यथी भीजायेल; हृदयवाळा अने परहितनो एक उपदेश देनारा श्रीवीरचर्वमानस्वामीए 18 अमने कहा छे. प्रश्न क्यो माणस एवी क्रिया करनारो थाय ? ते कहे छे. जे पुवुहाई नो पच्छा निवाई, जे पुव्वुहाई पच्छा निवाई, जे नो पुवुट्टायोनो पच्छा निवाई सेऽवि तारिसिए सिया, जे परिन्नाय लोगमन्ने सयंति ॥ सू. १५२ ॥ जे कोइए संसारनो (अस्थिर) स्वभाव जाणवावडे धर्म चरणमां एक तत्पर मनवालो बनीने प्रथमथी दीक्षाना अवसरे संयम | अनुष्ठान करवाने तैयार थएलो होय ते 'पूर्वोत्थायी' छे, अने पछीथी श्रद्धा तथा संवेगथी विशेषथी वधता परिणामवाळो होय, तो ते चारित्रथी भ्रष्ट थतो नथी, (पडवाना स्वभाववालो ते निपाती छे. पटले चारित्र लेइने निपात करे ते निपाती छे, आवो निपाती For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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