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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षय थयो के. अथवा मिथ्यात्वनो हाल तेने उदय नथी, एटले सम्यक्त्तनी माप्तिना हेतुभूत कर्मविवर लक्षणवाळो संघि [अवसर] आचा० अथवा शुभ अध्यवसायना जोडाणरूप संघि तने मल्यो छे, तेने तारा आत्मामा स्थापन करेलो तुं नजरे जो, एथी हवे तुं एक क्षण पण || सूत्रम् ॥५६९॥ भमाद न करजे. विषय विगेरेना कारणे प्रमादी न थइश, क्यो प्रमादी न थाय ? उत्तरः-'जे इमस्स' जे एटले जेणे तख प्राप्त कयु, ॥५६९ एवा तवज्ञानीने 'जेना बडे आठ प्रकारर्नु कर्म' विशेष करीने ग्रहण थाय ते इन्द्रियांवाल विग्रह (शरीर) औदारिक छे, तेनो आ वर्तमानमो समय [क्षण] सुखमां के दुःखमां वीत्यो. अने भविष्यमां वीत. ते दरेक क्षण शोधवानो खभाव छ, ते अन्वेषी कहेवाय छे, अने ते सदा अप्रमत्त रहे छे, आचार्य कहे छे के आ हुँ नथी कहेतो पण 'एसमग्गे आ कहेलो मोक्ष मार्ग आर्य पुरुषोए कहेलो .एटले बधा त्यागवारूप धर्म (कुतीर्थ विगेरे) थी दूर रही मोक्ष किनारे पहोंचेला एवा तीर्थकर गणधरोए प्रकर्षथी पूर्वे कहेलो छ, वळी 8 तीर्थकरोए पूर्वे कहेलो अने हवे कहेबातो मार्ग को छे, एटलुज नही पण ते प्रमाणे वर्तवानुं छे.ते कहे छे. 'उहिए'-संधि (अवसर) मळेलो है। जाणीने धर्मचरण माटे तैयार थएलो तु [साधु] एक क्षणमा पण प्रमाद न करीश. वळी चीजु भुं समजवानुं छे? ने कह छे-जाणित्तु-दरे8 कमाणीनुं दुःख अथवा तेनुं मूळ कारण कर्म जाणीने तथा मनने प्रसन्न करना मुख जाणीने तु प्रमादी न थइश. बळी दरेक जीवने दुःख अथवा कर्म जु९ छे, एटलंज नहि पण कर्मनुं मूळ कारण अध्यवसाय पण दरेक पाणीनो जुदोज छे.ते बतावे छे, 'पुढो' जेओनो अभिपाय प्रथा छे तेओ प्रथक् छंदवाळा कहेवाय छे. एटले जुदी जुदी जातना बन्धना अध्यवसायना स्थानवाला छे. तेओ 'इ' 18 ते आ संसारमा अथवा संज्ञावाला संज्ञी लोकमां मनुष्यो छे. अने तेज प्रमाणे बीजा जीवो पण जाणवा, अने दरेक संझी प्राणीनो द, जुदो जुदा संकल्प होवाधी तेना कार्यरूप कर्म पण जुदुंन छे, अने तेना कारणरूप दुःख पण जुदा रुपवाडं छे, अने कारण भेद लें लखनAAEX For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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