SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org हिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विपणुन्नए (सू० १४६) आचा031 आ मनुष्य लोकमां जेओ केटलाक मनुष्यो आरंभ रहिन जीवनारा छे, अहीं आरंभ एटले सावद्य अनुष्ठान अथवा पमादीपणुं छे कई छे के सूत्रम् ॥५६८॥ आदाणे निक्खेवे, भासुस्सग्गे अठाणगमणाई । सहो पमत्त जोगो, समणस्सवि होइ आरंभो ॥१॥ IM॥५६८॥ कोइ पण वस्तु लेवी के मुकवी, बोलवू. मल परठवो, स्थानमा रहे. अथवा जदूं आव, आ वधुं कार्य साधु जो प्रमादथी करे,si तो तेने आरंभ (नो दोष) लागे छे, पण तेथी उलटुं ते प्रमाद न करे, तो अनारंभी कहेवाय छे, तेवू निरारंभ जीवन गुजारे छे, तेवा साधुओ समस्त आरंभथी निवृत्त याला छे, अने जे गृहस्थीमो पुत्रकला के पोनाना शरीर विगेरेना रक्षण मादे आरंभ करे , 18| ला तेमना उपर जीवन गुजारे , तेनो भावार्थ भा छे, के सावध अनुष्ठान करनार गृहस्थी छे, नेमना आश्रये पोताना देखनो निर्वाह करवावाला अनारंभ जोबनवाळा ते साधुओ होय छे, जेम कादवना आधारे रहेल छतां कमळ निर्लेप होय हे, नेम तेश्रो निर्लेप छे, जो एम छे, तो भुं समज. ते कई के, आ सावध आरंभवाळा कर्तव्यमा संकुचित गात्रवाळो बने. अथवा अहीं जिनेश्वर कहेला | धर्ममा रही पापारंभधी निवृत्त थाय, प्रश्न-ते शुं करे? उ०-ते सावध अनुष्ठानथी आवेल (थता) कर्मने क्षय करतो मुनि भावने भजे प्रश्न-शृं आलंबन लइने उपरत थाय? उ०-'अयंसंघी' विगेरे (अविवक्षित कर्म वताच्या विनानो धातु होय ते पण अकर्मक धातु ती थाय छे. जेमके, जो ? मृग दोडे के ! एम अहीं पण "अद्राक्षीत् क्रिया छतां पण अमंघि एम प्रथमा विभक्ति करी छे.) आ प्रत्यक्ष नजरे देखातो आर्यक्षेत्र मुकुलमा जन्म इन्द्रियांनी पूरी शक्ति धर्मनी श्रद्धा नथा वैराग्य लक्षण वाळो अवसर मळ्यो छे, अथरा मिथ्यात्वनो । कला-CGES For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy