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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४३०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नातः परमहं मन्ये, जगतो दुःखकारणम् । यथाऽज्ञान महारोगो, दुरन्तः सर्वदेहिनाम् ॥१॥ आ जगतमां जे अज्ञानरूपी महारोग सर्वे जीवोने दःखे करीने दूर थाय तेवो असाध्य छे, तेनाथी बीजु दुःखनुं कारण हुँ मानतो नथी, विगेरे छे. अहिं सुतेला वे प्रकारना छे, द्रव्यथी अने भावधी तेमां निद्रा ममादवाळा द्रव्यथी सुता छे, अने मिथ्यात्व अने अज्ञानरुप महानिद्राथी मूढ वनेला जेओ मिथ्यादृष्टि (मोक्ष मार्गथी विमुख) अमुनि छे. तेओ निरंतर भावथी सुतेला जाणवा, कारणके तेओ (सर्व जीवोने अभय दान आपत्रा रूप) सम्यकज्ञान तथा चारित्रनी क्रियाथी रहित छे. पण निद्रामां पडेलानुं आ प्रमाणे समज के बखते मिध्यादृष्टि दोह अने सम्यक् दृष्टि पण होय, आ अमुनि यादे बतान्युं हवे मुनिओनुं वर्णन करे छे. तेओ हंमेशां सुबोधथी युक्त अने मोक्षमार्गथी चलायमान यता नथी पण निरंतर हिसने मेळवावा अहितने छोडवा. संयम पाळवा प्रयास करे | तेथी तेभी जागता छे अने शरीरनी स्वभाविक अशक्तिथी द्रव्य निद्रा तेओने होय ( सुवे ) तो पण रातना नवथी ऋण वाग्या सुधी शास्त्रमां बतावेली विषए सुवाथी तथा अल्प निद्राथी तेओ जागताज है, आज भाव स्वाप ( सुवुं ) तथा जागरण करवुं ते संबंधी नियुक्तिकार गाथा कहे छे: सुत्ता अमुणिओ सया मुणिओ सुत्ता त्रि जागरा हुति । धम्मं पडुश्च एवं निद्दासुत्त्रेण भइयां ॥ २१२ ॥ oret अने भावी बन्ने प्रकारे स्रुता छे, तेमां निद्राथी स्रुतेलानुं वर्णन पछी कहेशे अने भावयी सुतेलानुं पहलां कहे छे. जेओ अमुनि (गृहस्थो ) मिथ्यात्वथी तथा अज्ञानथी घेराइने हिंसा विगेरे पांच आस्रव सदा वर्ते छे, तेओ भावथी सुतेला छे. अने For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥४३०॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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