SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् केटलाक अन्यदर्शनीओ परलोकने बतायवानी इच्छावाला पोताना मंतव्यना प्रेमथी बीजान मंतव्य जुटुं ठरावया विवाद करे छे, आचा० जेमके भागवत मतना लोको कहेले के पचोस (२५) तखना ज्ञानथी मोक्ष थाय छे. आत्मा सर्वव्यापि छे, गुण रहित छे, चेतन्य 51 लक्षणवालो हे, अने विशेष रहित सामान्य तत्व छे, तथा वैशेषिक मतवाला कहे छे, द्रव्य विगेरे छ पदार्थना परिज्ञानथी मोक्ष छे, समवायिज्ञान गुणवडे इच्छा प्रयत्न द्वेष विगेरे गुणोथी गुणवान् आत्मा छे, परस्पर निरपेक्ष सामान्य विशेषरुप तत्व छ, शाक्य Pin५२३॥ मतवाला कहे छे, परलोकमा जनार आत्मान नथी, निश्चययी सामान्य क्षणिक वस्तु छे, मीमांसक कहे छे, के मोक्ष तथा सर्वज्ञनो | अभाव हे, तथा केटलाक मतमा पृथ्वी विगेरे एकेन्द्रिय जोबो नबी, बीजा केटलाक वनस्पतिमां पण अचेतनपणुं माने छे, तथा है। केटलाक बेयेन्द्रि विगेरे कृमी विगेरेमा जंतुपणुं मानता नथी, अथवा जीवपणुं मानवा छतां तेना वधमां बंध मानता नथी, अथवा अल्प मात्र बंध माने छे, तथा हिंसामा पण भिन्न वाक्यपणुं छे, ते कहे : प्राणी प्राणिज्ञानं घातकचित्तं च तद्रताचेष्टा । प्रागैश्च विप्रयोगः पञ्चभिरापद्यते हिंसा ॥ जीव जीवतुं ज्ञान, घात करनारन चित्त, अने तेमा रहेलीचेष्टा पाणा साये वियोग, आ प्रमाणे पापने जाणवादी हिंसा थाय। ४) छे. तथा औदेशिकना परिभोगनी आज्ञा आश्वा विगेरेनी जे विरुद्ध वात छे, ते पोतानी मेळे विचारवू, प्र-ते ब्राह्मण तथा श्रमणो Hधर्म विरुद्ध जे बोले छे, ते सूत्र वडेज बतावे के, ___ अन्य दर्शनीन कहेचु आछे के:-( से दिलं चेण इत्यादि' थी लइने ‘नस्थित्य दोसोत्ति,') दिव्यज्ञानवडे अमे अथवा, | For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy