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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २८९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसपास छे, अने नानुं आयुष्य क्षुल्लक (नाना ) भव आश्रयी अंतर्मुहुर्त मात्र छे, अने वधारेमां वधारे त्रण पल्योपमनुं छे तेमां पण; संयजीवित ( साधुपणं) अल्पकाळ छे, तथा अंतमूहुर्त थी लइने थोडं ओहुं एवं करोड पूर्वनुं आयुष्य छे. जेमां साधुपणं उदय आवे ते अपेक्षा ते पण थोडं छे, एटले गमेतेटलं मनुष्यनुं आयुष्य होय; तोपण ते एक अंतर्मुहूर्त छोडीने बाकीनुं अपवर्तन ( अकाळ मोत) थाय छे. तेथी कां छे केः “अद्धा जो कोसे, वंधत्ता भोगभूमिएस लहुं । सब्बप्पजीवियं, वज्जइतु उच्चट्ठिया दोपहं ॥ १ ॥” उत्कृष्ट योगमां बंधना अध्यवसाय स्थानमां आयुष्यनो जे बंधकाळ छे. ते उत्कृष्टो काळ बांधीने जे जीव देव गुरु विगेरे भोग भूमीमां युगलिक तरीके जन्मे छे. तेनुं जल्दीथी वधु आयुष्य छोडीने तिथेच अने मनुष्यनुं अपवर्त्तन थाय छे। अने ते अपर्याप्त अंतर्मुहूर्त्तनुं अंतर जाणवुं, त्यारपछी अपवर्त्तन थाय छे, (जे आयुष्य त्रण पल्योपमनुं छे, ते पण कारण विशेषथी ओढुं धवा संभव छे.) सामान्यथी आयुष्य सोपक्रम जीवोने सोपक्रम छे, अने निरुपक्रमआयुष्यवालाने निरुपक्रम छे ते बतावे छे. ज्यारे जीवने पोतानुं आयुष्य त्रीजे भागे बाकी रहेछे. अथवा त्रीजानो त्रीजो (-) नवमो भाग बाकी रहे अथवा जघन्यथी एक वे अथवा उत्कृ| पृथी सात आठ वर्षे अथवा अंतकाळे काळे अंतर्मुहूर्त्त काळना प्रमाणथी जीव पोते पोताना आत्मप्रदेशोने नाडिकाना अंतरमां रहेला | आयुष्य कर्म वर्गणाना पुद्गळोने प्रयत्न विशेषथी रचना करे छे. ते वखते निरुपक्रम आयुष्यवालो थाय छे, अने बीजीवखते आयुष्य वांधे तो उपक्रम आयुष्य थाय छे. उपक्रम ते उपक्रमणना कारणथी थाय छे. ते कारणो नीचे बताव्यां छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥२८९ ॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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