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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ASAH सूत्रम् ॥२८८॥ अने ते पक्षी खावा जतां तीर छुटे छे. अने पक्षी मरी जाय छे.) तेज प्रमाणे लोभी धनमां लुब्ध मनवालो थइ वीजा दुःखोने जोतो नथी. आचा०18 “विणि विठ चिठे"-(विविध) अनेक प्रकारे (निविष्ट) रहेलं. पैसा मेळववा माटे चित्त जेनु छे, ते माणस अथवा जे माणसने मातापिता विगेरेमा प्रेम रह्यो छे, अथवा जेने उत्तम गायन विगेरेनो रस लेवामां चित्त लाग्यु छे, अथवा मूत्रपाठमां चित्तने ॥२८॥| बदले चिट्ठ लइए तो, कहे छे केः-ते माणस विशेषे करीने काय, वचन, अने मनना चंचळपणाथी पैसो पेदा करवामां रातदिवस | चित्त राखे छे, तेज प्रमाणे मातापिता विगेरेनो प्रेम धारण करी संसारवाळो छे, अथवा अर्थनो लोभी थइने पापथी लेपातो वगर | विचारे संसार-विषयमा एक चित्तवाळो बनीने हवे पछीथी शुं शुं करे ते कहे छे. आलोकमां मातापिता विगेरेमां, अथवा इंद्रिय-विषयमां लोलुपी बनी पृथ्वीकाय विगेरे जंतुने दुःख आपनारो ते पुरुष शस्त्र 18 वापरवामां वारेवारे तैयार थाय छे, ए प्रमाणे वारंवार पृथ्वीकाय विगेरेनी हिंसा करी नवां कर्म बांधे छे. जीवोने दुःख आपनार शस्त्र बे प्रकारचं छे, एटले खारा कुवान पाणी मीठा कुवामां नांखे; तो स्वकायथी हिंसा छे, अने अग्नि उपर पाणी नांखे तो, पर-16 कायथी हिंसा छे, (ते पहेलां अध्ययनमा बताव्युं छे.) आ प्रमाणे उपर कह्या मुजब हिंसा करे छे. बळी मूळ मूत्रमा एत्य सत्थे ने 8 बदले बीजी जग्याए एत्य सत्ते पाठ छे, तेनो आ प्रमाणेनो अर्थ छे. के मातापितामां अथवा पोते गायननो रसिक लोभी लोभमां त पडीने सक्त (गृद्ध) बनीने वारंवार तेमां एक चित्तवाळो थइने धर्मकर्म लोपीने विना विचारे काळ-अकाळ न जोतां पापमा प्रवर्ते छे. PI आ हालना जीवोने जो, अजरामरपद होय; अथवा लांचं आयुष्य होय; तो ते कर, घटे; पण टुंका आयुष्यमां, तथा मरण 8 माथे भमतुं होवाथी भोगनी इच्छाए व्यर्थ पाप करे छे. कारणके, हालना काळमां मोटामां मोटुं आयुष्य निश्चयथी सो वरसनी ASABHASKASIL For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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