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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२५४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलरेणुपुढविपचय राईसरिसो चउविहो कोहो ॥ तिणिसलयाकडट्टियसेलत्थंभोवमो माणो ॥ १ ॥ पाणीमां रेतीमां जमीन उपर अने पर्वत उपर जे फाट पडवा जेवो देखाव थाय छे तेवो चार प्रकारनो क्रोध छे. ( रेतीमां काढेली लीटी. पवनथी तुरत मली जाय. तेवो संज्वलन क्रोध जाणवो. एम अनुक्रमे दरेक वधारे वधारे प्रमाणमां जाणवो ) तथा तिनिश लता लाकडे हाडकुं पत्थरनो थांभलो ए चारनी उपमात्रालुं मान छे. (तिनिश लता झट वळे तेम संज्वलन मानवाळो मान मुकी झट नमे बाकीना मानवाला कठणाइथी नमे पण पत्थरनो थांभलो नमे नही तेम अनंतानुबंधी मानवालो नमे नही ) मायावलेहिगोमुत्ति मेंढसिंगघणवंस मूलसमा । लोभो हलिद्दकद्दमखंजणकिमिरायसामाणो ॥ २ ॥ अवलेखी (नेतर विगेरेनी छाल) गोमुत्रीका घेटानुं शीगडुं अने वांसनुं थडीडं, आ चारनी उपमां वाली माया छे. (संज्वलन माया वालो जेम नेतरनी छोल वाळेली होय तोपण सीधी थइ जाय छे, तेम आ माया वाळो मायाने दूर करे छे पण छेवटनी मायावाळो वांसनाथडीया माफक कट्टीपण कपट छोडतो नथी.) तथा लोभ हलदर कादव खंजन अने कृमिना रंग जेवो छे. (संज्यलनना लोभवाळो जेम हलदरनो रंग झट जतो रहे तेम आ लोभीने झट संतोष याय. पण कृमि रागथी रंगेला कपडा जेवा लोभीने मरतां सुधी संतोष न थाय. पचमासवच्छर जावज्जीवाणुगामिणो कमसो। देवगर तिरियणारयगइसाहणहे यवो भणिया ॥३॥ ते कपायो संज्वलन विगेरेनी स्थिति एक पखवाडीउं तथा चार मास, एकवर्ष अने छेवटना अनंतानुबंधीनी आखी जींदगी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥२५४॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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