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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥२५३॥ नो कर्मद्रव्य कषायो छे तथा उत्पत्ति कषायो शरीर उपधि क्षेत्र वास्तु स्थाणुं विगेरे उत्पत्ति कषायो छे, एटले जेने आश्रयीने कषा | योनी उत्पत्ति थाय; ते उत्पत्ति कषाय जणवा; तेवुज शास्त्रमा कयुं छे:आचा० 18'कि एत्तो कट्टयरं, जं मूढो थाणुअम्मि आवडिओ। थाणुस्स तस्सरूइ, न अप्पणो दुप्पओगस्स ॥१॥ ॥२५३॥ द्र कोइने स्थाणुं ( झाडनूं ) विगेरे वागतां मूढ माणस पोतना प्रमादनो दोष न काढतां तेज स्थाणा उपर क्रोध करे छे, है एनाथी वधारे दुःखदायक बीजुं शुं छे ? Pा प्रत्ययकपाय.-कषायोना जे प्रत्ययो एटले बंधनां कारणो छे ते अहींयां सुंदर अने खराव, एवा भेदवाळा शब्द विगेरे लेवा; कारणके एनाथीज उत्पत्ति तथा प्रत्ययन कार्य तथा कारणरूपे-भेद रहेलाछे. आदेश कषाय.-बनावटी भ्रमर विगेरे चढाववी ते छे. रसकषाय-रसथी एटले कडवा तीखा एम पांच प्रकारना रसनी अंदर रहेला छे ते लेवाभावकषाय-शरीर, उपधि, क्षेत्र, वास्तु, स्वजन, प्रेष्य, अर्चा विगेरे निमित्तथी प्रगट थएला जे शब्द विगेरे काम गुण कारण कायभूत कषाय कर्मना उदयरूप आत्माना परिणाम विशेष ते क्रोध मान माया लोभ एवा चार कपाय छे. ते दरेकना अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान आवरण तथा संज्वलन, एवा चार भेद बडे गणतां सोळ भेद वाला भाव कपाय छे. तेओनुं स्वरूप तथा अनुबंधनुं फल गाथाओ वडे कहे छे. SCARICARICARICHIGIANA** SAHASRECASॐॐॐॐॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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