SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचा० ॥२५॥ ANGRESSESSAGGIF ए राग माया ने लोभ एम वे भेदे छे, तथा द्वेष पण क्रोध अने मान, एम वे भेदे छे. ए चार स्थान वडे वीर्य, उपगूढ, (जोडावा) थी ज्ञानावरणीय कर्म बांधे छे. ए प्रमाणे आठे कर्मने आश्रयी जाणवू अने ते कषायो मोहनीय कर्मनी अंदर रहेला छे. अने आठे 31 सूत्रम् | पकारना कर्मनु मूळ कारण छे. काम गुणर्नु मोहनीयपणुं बतावे छेअट्ठविहकम्मरुक्खा सवे ते मोहणिजमूलागा । कामगुणमूलगं वा तम्मूलागं च संसारो ॥ १७८ ॥ ॥२५॥ पूर्वे कयु के कर्म पादप विगेरे तेनी व्याख्या करे छे. तेमां कर्मपादप क्या कारणवाला छे. तेनो उत्तर-आठ प्रकारना कर्मरूप वृक्षो छे. तेमनुं मूळ मोहनीय कर्म छे. एटले एकला कषायो न लेवा. पण काम गुणो मोहनीय मूळवाला छे. जे वेदना (संसार भोगववानी इच्छा) उदयथी काम थाय छे. ते लेवा. अने वेद छे ते मोहनीय कर्ममा समावेश थाय छे. तेथी मोहनीय कर्म जे संसारर्नु मूळ कारण छे. ते संसार लेवो. तेज प्रमाणे संसार कषाय, कामोर्नु परंपराए मोहनीय कर्म कारणपणाथी प्रधान भावने अनुभवे छे. (तेज कर्म बंधनमा अग्रेसर छे.) ते मोहनीय कर्मनो क्षय थवाथी बोजा कर्मनो अवश्य क्षय थशे तेज प्रमाणे. का छे. "जह मत्थयसूईऐ हयाए हम्मए तलो। तहा कम्माणि हम्मति मोहणिजे स्वयं गए ॥ १॥ जेम ताडना झाडनी जे मूइ मथाळे रहेली छे. ते नाश करतां ताडनं झाड नाश पामे छे, तेज प्रमाणे मोहनीय कर्म नाश पामतां | बोजां कर्मो नाश पामे छे. "आ मोहनीय कर्म दर्शन मोहनीय अने चारित्र मोहनीय एम बे भेदे छे, ते बतावे छे, PROHIBHANGA For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy