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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥२४२॥ आकाशनो अनुक्रमे गति, स्थिति, अने अवगाह लक्षणरूप छे, सादि, (आदीवाळो) परिणामिक देखावभाव ते, आकाशमां वादळानुं आचा08/इंद्रधनुष्य विगेरेनो देखाव छ, तथा परमाणुओर्नुरूप विगेरेमा बोजु गुणपणुं बदलाय छे. हवे आ प्रमाणे गुण कहीने मूळनो निक्षेपो कहे छे. ॥२४॥ 1 मूले छक्कं दवे ओदइ उवएल जाइमूलं च । खित्ते काले मूलं भाव मूलं भवे तिविहं ॥ १७३ ॥ मूळ शब्दनो छ प्रकारे नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव एम निक्षेपा छे. नाम स्थापना जाणीता छे. द्रव्यमूळ. द्रव्यमूळमां ज्ञ शरीर, भव्यशरीर, अने ते शिवाय (१) औदयिकमूळ, (२) उपदेशमूल, (३) आदिमूळ. एम त्रण प्रकारे छे. 8 वृक्षना मूळपणे जे द्रव्य परिणमे ते औदायिकमूळ जाणवू तथा वैद्य रोगाने तेनो रोग दुर करवा जे मूळनो उपदेश करे; ते उपदेद शमूळ-पिपरोमूळ विगेरे जाणवां; आदिमूळ वृक्षोनां मूळनी उत्पत्तिमा जे पहेलं कारण छे ते जेमके, स्थावरनाम गोत्र प्रकृतिना P| संबंधथी तथा मूळ निर्वर्तन उत्तर प्रकृतिना प्रत्यययी जे मूळ उत्पन्न थाय; तेनो भावार्थ कहे छे, ते मूळनो निर्वाह करनार पुद्ग लोना उदय आवतां कर्मण शरीर छे, ते औदारिक शरीरपणे परिण मतां पहेलं कारण छे. । क्षेत्रमुळ-जे क्षेत्रमा मुळ उत्पन्न थाय छे, अथवा जे क्षेत्रमा मुछ्नु वर्णन थाय ते जाणवू. काळमुळ-क्षेत्रमुल प्रमाणे एटले जे काळमां उत्पन्न थाय; अथवा वर्णन कराय; ते काळ मुळ छे. भावमुळ त्रण प्रकारे छे. भावमूळ. ॐॐॐ7-% MARG ES 964 For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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