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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सुत्रम् ॥२४॥ वांच्छना, तथा हास्य रति अरति, विगेरे निंदवा योग्य छे, तथा औपशमिक ते, उपशम श्रेणीए चढेला आयुष्यना क्षयथी तेज समये आचा० | अनुत्तर विमानने प्राप्त करे छे, तथा सारुं कर्म उदयमां न आववारूप छे, ते औपशमिक छे. क्षायिकभाव गुण चार प्रकारे छे. (१) सात मोहनीयकर्मनी प्रकृति क्षय थया पछी फरीथी मिथ्यात्वमा जाय (२) क्षीण मोहनीय कर्मवाला जीवने अवश्य बाकीनां त्रण ॥२४१ घातीकर्म दूर थशे (३) क्षीण घातीकर्मने आवरण रहीत ज्ञानदर्शन प्रगट थशे (४) बधां घातिअघाती कर्म दूर थतां फरीथी जन्म लेवो न पडे; तथा अत्यंत एकान्त बाधा रहीत परमानंदवाला मुखनी प्राप्ति छे, ते छे, क्षय उपशमथी ययेल क्षायोपशमिक दर्शन विगेरेनी प्राप्ति छे अने परिणामिक ते भव्य अभव्य, विगेरे छे, तथा संनिपातिक ते औदयिक विगेरे पांच भावनुं एक काळे साये हमळवू ते आ प्रमाणे छे. जेमके मनुष्य गतिना उदयथी औदयिक भाव छे त्यां पांच इंद्रियोनी प्राप्ति थवाथी ते समये ज्ञान संबंधी क्षय उपशमथी क्षायोपशमिक छे अने दर्शन मोहनियकर्मनी सात प्रकृतिना क्षयथी क्षायिक छे अने चारित्रमोहनीयना उपशम भावमा 5 औपशमिक छे अने भव्यपणाथी परिणामिकभाव छे एम जीवनो भावगुण बताव्यो (आनुं वधारे वर्णन चोथा कर्मग्रंथमा छे त्यांथी जोवू.) ६ हवे अजीव भावगुण कहे छे ते औदयिक अने पारिणामिकनो संभव छे. पण बीजानो नथी. औदयिक एटले उदयमां थयेल अने अजीवना आश्रयी छे ते विवक्षाथी अजीव लीधो जेमके केटलीक प्रकृतिओ पुद्गल विपाकीज होय छे. प्रश्न-तेकइ छे ? उत्तर-औदारिक विगेरे पांच शरीर, छ संस्थान त्रण अंगोपांग छ संहनन, पांच वर्ण, बे गंध, पांचरस, आठ स्पर्श, अगुरुलघु नाम, उपघातनाम, परा६ घातनाम, उद्योत आतपनाम, निर्माण, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर,शुभ, अशुभ आ वधी प्रकृतिओ पुद्गल विपाकिनी छे, कारणके, जीवर्नु संबंधपणुं छतां पुद्गल विपाकिपणे तेओ छे. परिणामिकभाव, अजीवगुण वे प्रकारे छे. अनादि परिणामिक ते धर्म-अधर्म KESARKET ॐॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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