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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२३७॥ www.kobatirth.org लेवो, अने भावगुण ते जीव अने अजीवनो जाणवो, आ प्रमाणे थोडामां बतावी तेनी विशेष व्याख्या करे छे. क्षेत्र गुण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवकुरु, उत्तरकुरु, हरी वर्ष, रम्यक, हेमवत, हैरण्यवत आ छ युगलिकनां क्षेत्र छे. ते सीवाय छपन्न अंतर द्वीप छे. तेमां प युगलिक छे, तेओने खेती विगेरे कृत्य करवा वीना जे जोइए ते कल्प वृक्षमांथी मली शके छे, तेथी ते अकर्म भूमि कहेवाय छे. आ क्षेत्रने आश्रयी गुण जाणवो, वली त्यां जन्मेला मनुष्यो देव कुमार जेत्रा सुंदर रूपवाला सदा जुवानी भोगवनारा पुरे आयुष्ये | मरनारा अनुकूल सुंदर पांचे इन्द्रिय विषय सुख भोगवनारा स्वभावथीज सरळ कोमळ स्वभाववाळा अने भद्रक भावना गुणथी देव | लोकमां जनारा होय छे ( साथै स्त्री पुरुषनुं जोडुं जन्मे अने ते नरमादा तरीके रहे तेथी ते युगलिक कद्देवाय ) काळ गुण. भरत भैरवत आ वे क्षेत्रमां प्रथमना त्रण आरामां एकान्त सुखवाला बखतमां युगलिकोनी स्थिति सदा सुंदर रूपवाली अने यौवनवाली रहे ले. फळ गुण. फळ तेज गुण, ते फळ गुण कहेवाय; अने ते फळक्रियाने आश्रयी छे, ते क्रिया सम्यक्दर्शन ज्ञानचारित्र विना आ लोक अथवा परलोकने आश्रयी जे करवामां आवे; ते एकांत अनंत सुखने आपनारी नहोवाथी तेनो फळगुण मळ्या छतां अगुण जेवो छे, पण For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥२३७॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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