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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Pबनाववा चौद पूर्व धारी आहारक लब्धिवाला साधु कोइपण वखत संदेह दूर करवा तीर्थकर पासे पोतानुं शरीर मोकलबा आहारकर आचा० 3 शरीर बनाववा बहारना प्रदेशोने लेवा आत्माना-प्रदेशाने बहार फेंके छे, अने केवलि समुद्घात समस्त लोकव्यापी छे एटले तेनी सूत्रम् अंदर बधा समुद्घात छे, ए, नियुक्तिकार पोतेज कहे छे. चौद राज लोक प्रमाण आकाश खंड छे तेमा व्यापे छे कारणके बहु पदेशनुं गुण पणुं छे. आ केवलि समुद्घात केवळ ज्ञान थया पछी केवळ ज्ञानी प्रभु जुए छे के मारं आयुष्य थोडुं छे, अने कर्म है ॥२३६॥ | वधारे भोगववानां छे तेथो दंड कपाट मंथन आंतरा पूरवा, ते प्रमाणे संकोचमां पण जाणवु एटले पहेले समये उपर नीचे दंड स|मान बीजे समये बन्ने छेडे कपाट समान श्रीजे समये मथनी ( रवैया) ना आकारे तथा चोथे समये आंतरा पूरे छे ते प्रमाणे पाछ चार समयमा मूल शरीर करी नाखे छे. आ द्रव्य गुण छे हवे क्षेत्र गुण विगेरे कहे छे.. देवकुरु सुसमसुसमा, सिद्धी निब्भय दुगादिया चेव । कल भोअणूज्जु वंके जीवमजीवे य भावंमि ॥१७२॥ क्षेत्र ते देव कुरु विगेरे जुगलीआना क्षेत्र छे. त्यां सदाए कल्प वृक्ष रहे छे, काळ गुणमा सुखम सुखम विगेरे नामना आरा जाणवा, जेमां काळे करीने वस्तुमां फेरफार थाय छे. फळ गुणमां सिद्धि गति छे. पर्यव गुणमा निर्भजना (निश्चित भेद ) छे. गणना गुणमां बेत्रण चार विगेरे नुं गणवू छे. करण गुणमां कळार्कोशल्य छ, अभ्यास गुणमां भोजन विगेरे छे. गुण अगुणमां सरळता है छे, अगुण गुणमां वक्रता छे, भवगुण अने शीलगुणनो भावगुणनो विषय लेवाथी जीवनुं ग्रहण लेवाथी तेमा समावेश थइ गयो छे. तेथी गाथामां जुदुं बताव्यु नथी. भावगुण ते जीवनो नारक विगेरे भव जाणवो, शीलगुणमां जीवनो क्षमा विगेरे गुण युक्त आत्मां *--CR-S 55-%A5955 E RESTEGS -565 For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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