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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् SEX ॥३५९॥ अथवा गुरु महाराज कहे छे के जेना वडे कर्म बंधन थाय ते कृत्य तारे न करवू. एटले पापना काममां न वर्तवू अथवा जेना आचा० वढे राजना उपभोग विगेरेनो कर्म बंध छे, ते न करवं. (एटले संयमथी राज मुख न वांच्छ) अथवा जे साधुपणाथी मोक्ष थाय तेज साधु जो भोगमां पडे तो मोक्षने बदले संसार भ्रमण थाय (माटे साधुए दरेक जग्याए विवेकथी वर्तवू.) ॥३५९॥ आ प्रमाणे अनुभवयी निश्चय करेलु छतां मोहथी हारेला जीवो सत्य वातने समजता नथी. आज हेतुनुं विचित्रपणुं छे के जे पुरुषो तीर्थकर प्रभुना उद्देशयी रहीत छे. तेओनुं मोह तथा अज्ञान बढे अथवा मिथ्यात्वना उदयथी तत्व संबंधी ज्ञान बंधाएलुं छे. में तेओ मोहनीय कर्मना उदयवी मृढ बने छे. अने तेओने स्त्रोओ भोगनुं मुख्य कारण छे, ते बतावे छे. एटले युवान स्वीओना कटाक्ष अंगना चाळा सुंदर देखाव हाथना लटका विगेरेथी आ लोक (संसारी जीव समूह) आशा अने | अभिलापथी हारेला जीवो क्रूर कर्म करीने नरक विपाक फळरूप शल्यने मेळवीने ते दुर्गतिना दुःखरूप फळने विसरीने मोहर्थी ४ सुमति (अंतरात्मा) ने विसरेलो प्रकर्षे करीने पीडाएलो पराजीत बने छे. एटले पोतेज परवश थाय छे. एटलं नहीं पण बीजाओने 4 पण वारंवार खोटो उपदेश आपीने दुर्गतिमां लइ जाय छे. ते मूढो आ प्रमाणे बोले छे. आ स्त्री विगेरे उपभोगने वास्ते आनंदमां # स्थान बनावेलां छे. एना विना शरीरनी स्थिति नज याय अने ते उपदेश तेओना दुःखना माटे थाय छे. एटले तेमना कहेवाप्रमाणे 3 चालनारने पण शरीर तथा मननां दुःखो भोगवां पडे छे. अथवा मोहनीय कर्म बंधाय छ, अथवा ते अज्ञानी बने छे. अने वारंवार टू तेमने मरणनां दुःख थाय छे. नरकमां जर्बु पडे छे, त्यांची नीकळीने तिर्यंच थर्बु पडे छे. आवधानो मूळ कारण स्त्रीमा मोह पामवानुं AE%AC%ा For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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