SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३१९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथवा जेने अरति प्राप्त न थइ होय; तेनेज एम कहेवाय छे, पण आ उपदेश संयम - विषयमा बुद्धिमान पुरुषने कहेवाय के, संयममां अरति न करवी; तथा संयममांथी अरति दुर करनारने केवा गुण मळे ते कहे छे: "खणं सि मुके" विगेरे बारीक काळने क्षण कहे छे. ते क्षण, जुनी साडी (वने) फाडतां जेटली वार लागे; तेथी पण वारीक काळ समय छे. आवा सूक्ष्म संयममां पण कर्म जे आठ प्रकारनां छे, अथवा संसारबंधन छे ते बंधन नथी. भरत महाराजा | माफक मोह मूकी दे, तो तेनुं कल्याण थइ जाय. ( केवळज्ञान पामीने मोक्षमां जाय; ) अने जेओ उपदेश न माने; तेओ कंडरीक मुनि माफक चार गतिमां भ्रमण करे छे, अने दुःखसागरमा डुबे छे, तेज कहे छे: अणाणा पुट्ठावि एगे नियहृति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो, समुद्वाय लद्धे कामे अभिगाइ, अणाणाए मुणिणां पडिलेहंति, इत्थ मोहे पुणो सन्ना नो हव्वाए नो पाराए (सूत्र- ७३) हितमा अहित छोड, ए जिनेश्वरनी आज्ञामां छे. तेथी विरुद्ध चालबुं ते अनाज्ञा छे. जे पुरुषो आज्ञाबहार थइने परिषह अने ऊपसर्गथी कंटाळीने, अथवा मोहनीयकर्मना उदयथी कंडरीक विगेरे मुनिओनी माफक संयमथी भ्रष्ट थाय छे, ते जडपुरुषो जेमने करवा न करवानो विवेक नथी: तेओ मोहथी, अथवा अज्ञानथी घेरायला छे. कहां छे के: “अज्ञानं खलु कष्टं, क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । अर्थ हितमहितं वा न वेत्ति येनावृतो लोकः ॥ १ ॥” खरेखर, क्रोध विगेरे बधां पापोथी पण अज्ञान मोढुं पाप छे, ते घणुं दुःख आपनार छे, ते अज्ञानथी घेरायलो माणस पोताना For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥३१९॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy