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5 विस्तारने मेळववा चाहे छे. पण जेओ विद्वान छे, तेनुं चित्त मोटा मोक्ष मार्गमा एकतान वालुं छे. कारणके श्रेष्ट हाथी नाना पा-8 आचा०
तळा थडबाला झाडनी साथे पोतानुं शरीर घसतो नथी. म आचार्यनो उत्तरः-अमे तेने जुटुं कहेता नथी. कारणके, चारित्र पामेलाने आ उपदेश छे, अने चारित्रप्राप्ति ज्ञान शिवाय नथी;
सूत्रम् ॥३१८॥ कारण के चारित्रनुं कारण ज्ञान छे अने कार्यए चारित्र छे. तथा ज्ञान, अने अरति तेने विरोध नथी; परंतु रतिनो विरोधी अरति छे.
६ तेथी संयममा जेने रति छे, तेनी साथे अरति बाधारुप छे, परंतु ज्ञाननी साथे तेनो विरोध नथी; कारणके, ज्ञानीने पण चारित्र मो-18 | हनीयना उपशमथी संयममां अरति थाय छे, कारणके, ज्ञान पण अज्ञाननु बाधकज छे, पण संयमनी अरतिनुं बाधक नथी; तेज कडू छे:
ज्ञानं भूरि यथार्थ वस्तुविषयं स्वस्य द्विषो बाधकं, रागारातिशमाय हेतुमपरं युङ्क्ते न कर्तृ स्वयम्। दीपो |2| यत्तमसि व्यनक्ति किमु नो रूपं स एवेक्षतां, सर्वः स्वं विषयं प्रसाधयति हि प्रासङ्गिकोऽन्यो विधिः ॥१॥” 8 घणुं ज्ञान छे, ते यथार्थ वस्तुविषय संबंधी छे, ते पोताना शत्रु अज्ञानतुं बाधक छे. रागनो शत्रु, शम (शांतिने) माटे बीजो 6
हेतु पोते जोडतो नथी. जेम दीवो छे ते पोते अंधारामा रुपने प्रगट करे छे, तेज अहींया रुपने जुओ; कारणके, सर्व प्रासंगीक विधि र पोतपोताना विषयने साधे छे. तथा आचार्य कहे छे केः-आ तमारा कानमां आव्यु नथी.
'बलवानिन्द्रियग्रामः, पण्डितोऽप्यत्र मुद्यतीति' इंद्रियसमूह वळवान छे, अने तेमां पंडित पण मुंझाय छे, एवी तमारूं कहेवू कंइ विसातमा नथी.
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