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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 5 विस्तारने मेळववा चाहे छे. पण जेओ विद्वान छे, तेनुं चित्त मोटा मोक्ष मार्गमा एकतान वालुं छे. कारणके श्रेष्ट हाथी नाना पा-8 आचा० तळा थडबाला झाडनी साथे पोतानुं शरीर घसतो नथी. म आचार्यनो उत्तरः-अमे तेने जुटुं कहेता नथी. कारणके, चारित्र पामेलाने आ उपदेश छे, अने चारित्रप्राप्ति ज्ञान शिवाय नथी; सूत्रम् ॥३१८॥ कारण के चारित्रनुं कारण ज्ञान छे अने कार्यए चारित्र छे. तथा ज्ञान, अने अरति तेने विरोध नथी; परंतु रतिनो विरोधी अरति छे. ६ तेथी संयममा जेने रति छे, तेनी साथे अरति बाधारुप छे, परंतु ज्ञाननी साथे तेनो विरोध नथी; कारणके, ज्ञानीने पण चारित्र मो-18 | हनीयना उपशमथी संयममां अरति थाय छे, कारणके, ज्ञान पण अज्ञाननु बाधकज छे, पण संयमनी अरतिनुं बाधक नथी; तेज कडू छे: ज्ञानं भूरि यथार्थ वस्तुविषयं स्वस्य द्विषो बाधकं, रागारातिशमाय हेतुमपरं युङ्क्ते न कर्तृ स्वयम्। दीपो |2| यत्तमसि व्यनक्ति किमु नो रूपं स एवेक्षतां, सर्वः स्वं विषयं प्रसाधयति हि प्रासङ्गिकोऽन्यो विधिः ॥१॥” 8 घणुं ज्ञान छे, ते यथार्थ वस्तुविषय संबंधी छे, ते पोताना शत्रु अज्ञानतुं बाधक छे. रागनो शत्रु, शम (शांतिने) माटे बीजो 6 हेतु पोते जोडतो नथी. जेम दीवो छे ते पोते अंधारामा रुपने प्रगट करे छे, तेज अहींया रुपने जुओ; कारणके, सर्व प्रासंगीक विधि र पोतपोताना विषयने साधे छे. तथा आचार्य कहे छे केः-आ तमारा कानमां आव्यु नथी. 'बलवानिन्द्रियग्रामः, पण्डितोऽप्यत्र मुद्यतीति' इंद्रियसमूह वळवान छे, अने तेमां पंडित पण मुंझाय छे, एवी तमारूं कहेवू कंइ विसातमा नथी. SarkarRAAG For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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