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________________ Shri Maha Jan Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Si Kailassagarsuri Gyarmandie गमन सूचम्युछे, तेज जीव दिशा विगेरेयां जवाना शानबडे आत्मवादी अने लोकवादी संहत (पुरु) छे भने । आचा०31 (प्राण धारण करनार) छे. कर्मवादी एटले ज्ञानावरणीय आठ कर्म छे. तेने बोलवाना स्वभाववालो कारण के निश्चय, मिथ्यात्व, सूत्रम् अविरति, प्रमाद कषाय योगोथी पहेला पाणीओ गति आगतिना कर्मने ग्रहण करे छे. त्यारपछी ते ते विरुप रुपवाळी योनिओमां। उत्पन्न थाय छे. अने कर्म छे ते. प्रकृति, स्थिति, अनुभाव, प्रदेशरूप चार प्रकारे जाणना. आ वचनधी काळ, यदुच्छा, नियति, P॥ ६४ ॥ इश्वर, आत्मवादी जे एकान्त माननारा छे, तेमन खंडन कयु जाण'. तथा जे कर्मवादी तेज क्रियावादी छे कारण के योगना निमित्ते कर्म बंधाय छे. अने योग एटले व्यापार छे. अने व्यापार नियारुप छे. तेथीन कर्मने कार्य पणे बोलवाथी तेनुं कारण क्रियाने पण परमार्थयी बोलनारो छे. क्रिया कर्म निमित्तपणु जैनागममा प्रसिद्ध छे. ते आ प्रमाणे आगममा छे. जावं गं भंते! एस जीवे सया समियं एयड वेयह चलति फंदति घट्टति तिप्पति जाव तं तं भावं परिणमति तावं चणं अहविहबंधए वा सत्तविहवंधए वा छबिहबंधए वा एगविहवंधए वाणोणं अबंधएत्ति ॥ वा हे भगवन् ! आ जीव हमेशां समान वधे छे के वधारे वधे छे, चाले छे, फरके छे. अथवा तिपे छे (गति करे छे) ते ते । भावने ज्यामुधी परिणमे छे त्यांसधी आठ प्रकारनो कर्म बंध के, सात प्रकारनो, छ प्रकारनो, के एक प्रकारनो, के बंध विनानो छ ? For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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