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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie आँचा सूत्रम् ॥ २१ ॥ ॥२१ ॥ सारो परूवणाए चरणं तस्सविय होइ निवाणं । निवाणस्स उसारो अवाबाहं जिणा बिति ॥ १७ ॥ प्ररुपणानो सार चारित्र (सद्वर्तन) छे. अने तेना बडे मोक्ष छे. अने मोक्षनो सार अभ्याबाध मुख छे एवं जीनेश्वर देव कई छे. | हवे श्रुतस्कंध अने पदना नामादि निक्षेपा विगेरे पूर्व माफक कहेवा, अहिआ भाव निक्षेपार्नु काम ले. ते भाव श्रुतस्कंध ब्रह्मचर्य रूप छे. पथी ब्रह्मचरण ए वे शब्दोना निक्षेपा करवा ते करे छे. बंभम्मी य चउकं ठवणाए होइ बंभणुप्पत्ती । सत्तण्हं वपणाणं नवण्ह वण्णंतराणं च ॥१८॥ तेमां ब्रह्म तेना पार निक्षेपा छे. नाम ब्रह्म, ते कोइन नाम होय, असदभाष स्थापनामां अक्ष विगेरेमा कल्पना करवी, अने | सद्भावना स्थापनामां ब्राह्मणे जनोइ पहेरी होय तेची आकृति वाळी माटी विगेरे द्रव्य नी मूर्ति होय अथवा स्थापनामां कहेवाता सम्बधमां ब्राह्मणनी उत्पत्ति केवी थह ते बतावची से प्रसंगने लइने सात वर्ण अने नव वर्णान्तर उत्पत्ति बताधवी जोइए ते वतावेछे एका मणुस्सजाई रज्जुप्पत्तीइ दो कया उसमे । तिण्णेव सिप्पणिए सावग धम्मम्मि चत्तारि ॥१९॥ ज्यां मुधी ऋषभदेव भगवान् गादीए बेठा नहोता त्या मुधी मनुष्य जाती एकन हती. अने राज गाहीए वेठा पछी भगवंतने आश्रयीने जे रह्या ते क्षत्रियो कहेवाया भने बाकीना शोच करवाची अने रुदन करवाथी शूद्र कईचाया अने अग्निनी उत्पत्ति यता तेमाथी लोहार विगेरेना शिल्प तथा बेपारनी वृत्तिए गुजरान करवाथी वैश्यों कहेवाया अने भगवानने केवळहान थया पछी For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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