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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेओनो विभाग न थाय एवं नानुं आपणे कल्पिए ते पर्यायोवडे खंडिये तो, अनन्त, अविभाग, परिच्छेदरूप छे अने ते पर्याय संख्यावडे निर्दिष्ट करीए तो वधा आकाश प्रदेशनी संख्याथी अनन्त गणु छे, एटले आकाशना जेवला मदेशो छे तेनो वर्ग | करीए तेटल छे. तेथी बीजं विगेरे स्थानोवडे असंख्यात गच्छेम जवावडे अनन्त भाग आदिबुद्धिवडे छ स्थानमा रहेनारी असंरूयेय स्थान गत श्रेणी थाय छे. आ प्रमाणे एकवण स्थान सर्व पर्यायो युक्त होय ते गणतरीमां गंगी शकाय नहि त्यारे केवीरीते बधा गणी शकाय ? एटला माटे, हवे कथा बोजा पर्यायो ? छे जेओना अनन्त भागे बतो रहे छे. जे पर्यायो बुद्धिमां पहोंचे ते लेवा बाकीना केवळी गम्य छे तेनो भावार्थ आ छे के केवळी जाणे पण न कहेवाय तेवा पर्यायाने पण तेमां उमेरवाथी बहुप धाय एज प्रमाणे ज्ञान अने ज्ञेष ए बन्नेना तुल्यपणाथी बन्ने बरोबरज छे. तेथी अनन्त गुणा न पाप माटे शिष्यनी आशंकाने दूर करवा आचार्य कहे छे जे आ संयम स्थान श्रेणी कही ते वधा चारित्र पर्यायो तथा ज्ञानदर्शन पर्याय सहित लइए तो परिपूर्ण थाय, सर्व आकाश प्रदेशथी ते पर्यायो अनंत गुणा थाय. अहिंआ फक्त चारित्र मात्र उपयोगीपणाथी पर्यायोनो अनन्त भाग वृत्तिपशुं सूचव्यु तेथी तमारो बतावेलो दोष लागू पडतो नयी. हवे सारद्वार कहे छे. कोनो कयो सार ते बतावे छे. अंगाणं किं सारो ? आयारो तस्स हवइ किं सारो ? । अणुओगत्थो सारो तस्सवि य परूवणा सारो ॥ १६ ॥ अंगोनो शुं सार छे ? उ. आचार तेनो भुं सार? उ. अनुयोग अर्थ, अने तेनो सार प्ररूपणा छे. गाथानो अर्थ सरल होवाथी टीका नथी फक्त अनुयोग अर्थ एटले कवानो विषय अने तेनी मरुपणा पटले पोतानी पासे छें ते बीजाने समजाव वळी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ २० ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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