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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सूत्रम ॥ ११ ॥ www.kobatirth.org निक्षेप जाणवो, अहिं क्षेत्र: काळ, विगेरे ज्यां घटे त्यां योजनां ॥ ३॥ नाम स्थापना विगेरे चार प्रकारे बधामां ध्यायेछे, ते कहे छे. जत्थ य जं जाणिजा निक्खेवं निक्खेवे निरवसेसं । जत्थविय न जाणिजा चउक्कयं निक्खिवे तत्थ |४| एटले चरण, अने दिशा शब्दनी आदिमां जे निक्षेपो क्षेत्र काळ, विगेरे संबन्धी जाणे त्यां संपूर्ण करे ज्यां संपूर्ण न जाणे त्यां आचारांग विगेरेमां नाम स्थापना द्रव्यभाव, ए चार निक्षेप करे आ उपदेश के गाथार्थ प्रदेश अन्तरना प्रसिद्ध अर्थना लाधवने इच्छारा नियुक्तिकार गाया कहे आयारे अंगमि य पुदिट्टो चउक्कनिक्खेवो । नवरं पुण नाणतं भावायारंमि तं वोच्छं ॥ ५ ॥ दशकालिक बोजा अध्ययननी धुलिक आचार कथामां आचारनो पूर्वे कलो निक्षेप छे, अने अंगनो चतुरंग अध्ययनमां छे. आ उत्तराध्ययननुं त्रीजुं अध्ययन छे. अहीं जे विशेष छे ते कहीए टीए, भावाचारनो अहिंविषय छे ते क्या प्रमाणे बतावे छे. तस्से गट्ट पवत्तण, पढमंग गणी तहेव परिमाणे । समोयारे सारो य, सत्तहि दारेहि नाणतं ॥ ६ ॥ भावाचारना एक अर्थवाळा शब्दो कहेवा, तथा कये प्रकारे मवृत्ति धाय, ते आचारनुं प्रवर्तन धयुं ते कहेतुं तथा पहेलुं अंग छे से बताव तथा गणी (आचार्य) तेजु केटला मकारंतु आ स्थान छे, ते कहेनुं तथा परिमाण बताब के आटलं. छेत क्यों समाये छते बताव तथा सार कहे वो आ· बारोबडे, पहेला भाव भावारथी एनो भेद जाणवो आ समुदाय अर्थ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपा० ॥ ११ ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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