________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्रथम उद्देशक ]
[ ३६ दुखों का प्रतिकार करने के लिए भी सावध क्रिया की जाती है । बीमारी से छूटने के लिए अभक्ष्य मांस-मदिरा आदि का सेवन किया जाता है। अन्य अभदय वस्तुओं का भक्षण किया जाता है । सांसारिक-सुख प्राप्त करने के लिए द्रव्य कमाना, कुटुंब को पालने और पोसने के लिए विविध प्रवृत्तियों करना इत्यादि कई सावध कार्य करने के लिए प्राणी तयार हो जाता है।
सूत्रकार ने इन क्रियाओं के कारणों का वड़ी कुशलता के साथ संकलन किया है। प्राणियों में पाई जाने वाली सहज मनोवृत्ति का मनोवैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने पर भी यही प्रमाणित होता है कि प्रायः ऊपर बताये हुए कारणों में से किसी भी कारणवश प्राणी सावध क्रियाओं में प्रवृत्त होता है। इन कारणों में सब आस्रव के कारणों का समावेश हो जाता है।
एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारम्भा परिजाणियव्वा भवन्ति । जस्सेते लोगंसि कम्मसमारम्भा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि (सू १०)
संस्कृतच्छाया-एतावन्तः सर्वे लोके कर्मसमारम्भाः परिज्ञातव्या भवन्ति । यस्येते लोके कर्मसमारम्भा परिज्ञाताः भवन्ति स खलु मुनिः परिज्ञातकर्मा, इति ब्रवीमि ।
शब्दार्थ--एयावंति सव्वावंति यही सब। लोगंसि लोक में । कम्मसमारम्भा= कर्मसमारम्भ । परिजाणियव्वा भवन्ति जानने चाहिए। जस्स=जिसको । एते=ये। लोगंसि= लोक में । कम्मसमारम्भा कर्मसमारम्भ । परिएणाया भवंति-ज्ञात हो जाते हैं । से वही । हु= निश्चय से। मुणी परिण्णायकम्मे परिज्ञातकर्मा मुनि है । ति बेमि=ऐसा मैं कहता हूँ।
भावार्थ-लोक में यही सब कर्मसमारम्भ जानने चाहिए । जो पुरुष संसार में इन कर्मसमारम्भों को जानता है, वह निश्चय ही परिज्ञातकर्मा (विवेकी) मुनि है। यह सब भगवान् के समीप जैसा मैंने सुना है, वैसा कहता हूँ।
विवेचन-कर्मसमारम्भ और उनके कारणों का प्रतिपादन पूर्ववर्ती सूत्रों में किया गया है। यहाँ यह बताया गया है कि लोक की समस्त क्रियाओं और उनके कारणों का पूर्व सूत्रों में उल्लिखित क्रियाओं और उनके कारणों में समावेश हो जाता है। यही क्रियाएँ और यही कर्मबन्धन के हेतु हैं जिनके द्वारा यह जीव नानाविध दिशा-विदिशाओं में नानाविध योनियों में भ्रमण करता हुआ दुख का अनुभव करता है।
जो व्यक्ति इन क्रियाओं और कर्मबन्धन के हेतुओं के स्वरूप को भलीभांति जान लेता हैहृदयंगम कर लेता है और उनका परित्याग कर देता है वह कर्मवन्धन से मुक्त हो जाता है। वह भव-भ्रमण से छूट जाता है । वह फिर दिशा-विदिशाओं में चक्कर नहीं खाता है। वह योनियों में जन्म लेने और मरने के दुख से मुक्त हो जाता है।
For Private And Personal