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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय वक्तव्य आज के युग में जबकि भौतिकवाद आँधी और तूफान की तरह बढ़ता चला जा रहा है, विज्ञान की नई-नई शोध विश्व-शान्ति को चुनौती दे रही है, संहारक-साधनों का विद्युद्गति से निर्माण किया जा रहा है, जबकि मानव भौतिक स्पर्धा के मैदान में जी-जान से दौड़ा जा रहा है, उसकी महत्त्वाकांक्षाएँ दानव की तरह बढ़ती जा रही हैं, जब कि मानव अपनी मानवता को भूलकर निर्जीव यन्त्रों के हाथ बिकता चला जा रहा है और जब कि विज्ञान के झंझावात ने धर्म और अध्यात्म के दीपक को बुझा-सा दिया है। ऐसे अवसर पर भगवान महावीर की अहिंसा, प्रेम एवं शान्ति से सनी हुई वाणी का प्रचार और प्रसार होना विश्व-शान्ति के लिए अनिवार्य है। भगवान् महावीर की वाणी वह महौषधि है जो विश्व-शरीर के समस्त रोगों को नष्ट कर उसे चिर आरोग्य प्रदान कर सकती है । भगवान् की वाणी में यह अनुपम शीतलता है जो संसार के संताप को दूर कर उसे शान्ति का रसास्वादन करा सकती है । उसमें वह भोज और तेज सन्निहित है जो मिथ्या भ्रान्तियों का निराकरण कर सत्य मार्ग को आलोकित करता है। अतएव भान भूले हुए विश्व को भगवान् की वाणी-सुधा का ज्ञान और पान कराना आज का युगधर्म है। श्राज की दुनिया का एक बहुत बड़ा समुदाय धर्म को निरी रूढ़ि, पाखण्ड, आडम्बर और उन्नति का अवरोधक समझ कर उससे विमुख होता जा रहा है । धर्म के नाम से ही उसे चिढ़ छूटती है। यह धर्म को कलह और झगड़े का मूल मान बैठा है। कहना न होगा कि इस वर्ग की ऐसी धारणा के पीछे कोई हेतु अवश्य है । वह हेतु है वास्तविक धर्म की आज के धार्मिक कहलाने वाले व्यक्तियों के द्वारा की जाने वाली उपेक्षा और रूढ़ि को ही धर्म समझ लेने की मिथ्या मान्यता । वास्तविक धर्म के प्रति किसी भी वर्ग की उपेक्षा नहीं हो सकती। धर्म के बिना संसार का कार्य एक क्षण के लिए भी नहीं चल सकता। धर्म के आधार पर ही पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा, आकाश, अग्नि, हवा, जल, समुद्र, पर्वत आदि प्रतिष्ठित हैं । प्रकृति की सारी क्रियाएँ धर्म से ही नियमित हैं। धर्म से ही मानव और अन्य प्राणियों का अस्तित्व है। धर्म ही सुख-शान्ति का स्रोत बहाने वाला और संसार को नन्दनवन बना देने वाला तत्त्व है। इस रहस्य को समझ कर भगवान महावीर और उनके समकालीन महापुरुष बुद्ध ने जगत् कल्याण के लिए सत्य और अहिंसामय धर्म का उपदेश प्रदान किया। उन्होंने भी अपने समय में चली आने वाली रूढ़ियों के विरुद्ध अहिंसक क्रान्ति की और धर्म में आई हुई विकृति को दूर कर सत्य-धर्म की प्रतिष्ठा की । भगवान महावीर और बुद्ध के इस मार्ग से प्रेरणा प्राप्त कर वर्तमान समय में महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा पर अवलम्बित क्रान्ति का आश्रय लेकर जो अश्रुतपूर्व सफलता प्राप्त की उससे सत्य और अहिंसा के प्रति विश्व का ध्यान पुनः आकर्षित हुआ। उत्तरोत्तर बढ़ती हुई हिंसा और अशान्ति से संक्षुब्ध विश्व के वातावरण में सत्य और अहिंसा का पुनः प्रतिष्ठापन हो यह नितान्त वाञ्छनीय है । भगवान् महावीर की वाणी मूल जैनागमों में संकलित है अतएव उनके अधिक से अधिक प्रचार और प्रसार में विश्व का कल्याण है और साथ ही साथ जैनधर्म की प्रचुरतर. प्रभावना भी। ___ उक्त उदार दृष्टिकोण को सामने रखकर ही आचाराङ्ग सूत्र का अनुवादित और सम्पादित प्रस्तुत संस्करण पाठकों के सन्मुख रखा जा रहा है। जैनागमों में श्राचाराङ्ग सूत्र का सर्वप्रथम स्थान है। यह बागम सबसे अधिक प्राचीन और मौलिक है । इममें प्ररूपित विषय अन्यन्त गम्भीर, व्यापक और तनस्पर्शी है । मुमुक्षु आत्माओं के लिए यह आकाश-दीप की तरह पथ-प्रदर्शक है । यह धर्म के रहस्य को प्रकर For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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