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नवम अभ्ययन चतुर्थ उद्देशक ]
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पना लेते थे । वे रूखे-सूखे चावल, बेर का चूर्ण, उड़द यदि नीरस आहार से निर्वाह कर लेते थे । ( भोजन का उद्देश्य क्षुधा की शान्ति करना है स्वाद लेना नहीं । अतः स्वाद पर विजय प्राप्त करना साधकों का कत्तव्य है ) ||४||
एयाणि तिनि पडिसेवे टु मासे अजावयं भगवं । अपिइत्थ एगया भगवं श्रद्धमा अदुवा मासंपि ॥ ५ ॥ वि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदुवा विहरित्या । arati ruise अन्न गिलायमेगया भुजे ॥६॥ ट्टे एमया भुजे अदुवा श्रमेण दमेणं । दुवालसमे एगया भुजे पेहमाणे समाहिं प्रपडिने ॥७॥ चाणं से महावीरे नोऽवि य पावगं सयमकासी । नहिं वा कारित्या कीरंतंपि नाणुजाणित्था ॥८॥ संस्कृतच्छाया—पतानि त्रीणि प्रतिसेवते अष्टौ मालानयापयद् भगवान् । पिवदेकदा भगवान र्द्धमासमथवा मासमपि ||५|| अपि साधिकौ द्वौ मासौ षड्मास्वानथवा विहृतवान् । रात्रोपरात्रमप्रतिज्ञः पर्युषितमेकदा भुक्तवान् ||६|| पष्ठेनैकदा भुंक्ते, अथवाष्टमेन दशमेन । द्वादशमेनैकदा भुंक्ते प्रेक्षमाणः समाधिमप्रतिज्ञः ||७|| ज्ञात्वा स महावीरो नापि च पावकं स्वयमकार्षीत् । अन्यैर्वा नाचकरत् क्रियमाणमपि नानुज्ञातवान् ॥८॥
शब्दार्थ — एयाणि तिन्नि पडिसेवे = चावल, बेर- चूर्ण और कुल्माष इन तीनों का ही सेवन
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करके | भगवं= भगवान् ने । अट्टमासे अजावयं = आठ मास व्यतीत किए। एगया = कभी। भगवं== भगवान् । श्रद्धमा अदुवा मासंपि = पन्द्रह पन्द्रह दिन और महीने - महीने तक । श्रपिइत्थ = जल भी नहीं पीते थे ||५|| अवि साहिए दुवे मासे = कभी दो-दो महीनों से अधिक । छप्पि मासे-छह छह महीने तक भगवान् पानी तक नहीं पीते हुए । ओवरायं अपडिने - रात-दिन निरीह होकर विहरित्था = विचरते थे | एगया = कभी (पार के दिन ) । श्रनगिलायं = नीरस श्राहार | भुञ्जे = काम में लेते || ६ || एगया छडे भुजे = वे कभी दो दिन के बाद खाते । अदुवा श्रमेण दसमेण = अथवा तीन-तीन दिन बाद, चार-चार दिन बाद । एगया दुवालसमेण= कभी पांच-पांच दिन बाद | पडिने = निरासक्त होकर । समाहिं पेहमाणे = शरीर-समाधि का विचार कर ।
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