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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नवम अध्ययन द्वितीय उद्देशक ] www.kobatirth.org जंसिपेगे पवेयन्ति सिसिरे मारुए पवायंते । तंसिपे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्ति ॥१३॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संघाडी पवेसिस्सामो एहा य समादहमाणा । पिहिया व सक्खामो दुक्खे हिमगसंफासा ||१४|| संस्कृतच्छाया— यस्मिन्नध्येके प्रवेपन्ते शिशिरे मारुते प्रवाति । तंसि भगवं पडिने हे विगडे हियासए । दविए निक्खम्म एगया राम्रो ठाइए भगवं समियाए ॥ १५ ॥ कन्तो माहणेण मईमया । एस विही बहुसो पडने भगवया एवं यन्ति ॥ १६ ॥ त्ति बेमि | तस्मिन्नप्येके नगाराः हिमवाते निवातमेषन्ति ॥ १३ ॥ संघाटी: प्रवेक्ष्यामः पधाश्च समादहन्तः । पिहिताः वा शक्ष्यामो ऽतिदुःखं हिमसंस्पर्शाः || १४ || तस्मिन् भगवानप्रतिज्ञः, अधोविकटेऽध्यासयति । द्रविको निष्क्रम्यैकदा रात्रौ स्थितो भगवान् समतया || १५ || एष विधिरनुकान्तो माहनेन मतिमता । बहुशोऽप्रतिशेन भगवता एवं रीयन्ते ॥ १६ ॥ इति ब्रवीमि ॥ [ ६०५ For Private And Personal शब्दार्थ — जंसि पि सिसिरे-जिस शिशिर ऋतु में । मारुए पवार्यते -ठंडी हवा चलने पर । एगे पवेयन्ति = सब कोई काँपने लगते हैं। तंसि पि हिमवाए उस ठंडी हवा में। एगे अगारा = कोई २ साधु । निवायमेपन्ति = वायुरहित स्थान की गवेषणा करते हैं ||१३|| संघाडीओ पवेसिस्सामो-ठंड लगने पर दो तीन वस्त्र धारण करेंगे। एहा य समादहमाणा = तापस आदि आग सुलगाते हैं । पिहिया वा सक्खामो = कम्बल आदि से शरीर ढँक कर ठंड सहन कर सकेंगे। हिमगसंफासा श्रइदुक्खे = शीतस्पर्श को सहन करना बड़ा कठिन है ||१४|| तंसि = उस शिशिर ऋतु में । पडिने भगवं= किसी बात की इच्छा न करने वाले भगवान् । श्रहे बिगडे - किसी वृक्षादि के नीचे खुले स्थान में रहकर । श्रहियासए - शीत सहन करते थे । दविए भगवं वे संयमी भगवान् | एगया राम्रो निक्खम्म = कभी अत्यन्त शीत से बाधित होने पर थोड़ी देर बाहर रहकर । समियाए ठाइए - समभावपूर्वक अन्दर आकर ध्यानस्थ हो जाते || १५|| सोलहवीं गाथा का शब्दार्थ प्रथम उद्देशक में लिखा जा चुका है । I
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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