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प्रथम उद्देशक ]
[१७
जिस प्रकार दिवाल पर अंकित किया हुमा चित्र दिवाल के बिना टिक नहीं सकता, न वह दूसरी दिवाल पर जाता है, न वह दूसरी दिवाल से आया है, किन्तु दिवाल पर ही उत्पन्न हुआ है और दिवाल में ही लीन हो जाता है इसी प्रकार ज्ञान (पैतन्य ) गुणरूप आत्मा शरीर में ही उत्पन्न होता है और शरीर में ही लीन हो जाता है। न तो वह कहीं दूसरे लोक से पाया है और न कहीं दूसरे लोक में जाता है । जब तक शरीर है तब तक संवेदन है, उसके बाद उसका अभाव हो जाता है। अतः परलोक में जाने आने वाली प्रात्मा नामक कोई चीज़ नहीं है। (यह मान्यता तजीवतच्छरीरवादियों की है।)
समाधान-उक्त शंका करना ठीक नहीं है। प्रात्मा स्वरूप से अमूर्त है। तदपि कर्मों के कारण वह शरीर-संयुक्त है। तैजस और कार्मण शरीर हर संसारी जीवात्मा के होते ही हैं। ये शरीर भी अत्यन्त सूक्ष्म होने से दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए शरीर में प्रविष्ट होती हुई और निकलती हुई आत्मा दिखाई नहीं देती। दिखाई नहीं देने मात्र से उसका प्रभाव सिद्ध नहीं किया जा सकता है। सूक्ष्म शरीर युक्त होते हुए भी आत्मा आता-जाता हुआ दृष्टिगोचर नहीं होता तदपि निम्न चिन्हों के द्वारा उसका आवागमन सिद्ध होता है।
प्रत्येक प्राणी को अपने शरीर का बड़ा श्राग्रह । अनुराग) हुआ करता है। अभी-अभी उत्पन्न सूक्ष्म से सूदम कीड़ा भी अपने शरीर की हिफाजत-सुरक्षा चाहता है। घातक या बाधक कारणों के उपस्थित होते ही वह भागने लगता है। यह उसके शरीर के प्रति अनुराग को सूचित करता है। जिसे जिस विषय का अनुराग होता है वह उससे चिरपरिचित और अभ्यस्त होता है। जो व्यक्ति जिस वस्तु के गुण-दोष नहीं जानता उसको उसके प्रति आग्रह कदापि नहीं होता। जन्म लेते ही शरीर के प्रति प्राणिमात्र को जो अनुराग देखा जाता है वह इस बात को सूचित करता है कि यह प्राणी शरीर-धारण करने का अभ्यस्त है। इसमे इस जन्म के पहले भी शरीर धारण किये थे तभी तो शरीर के प्रति इसका इतना अनुराग है। इससे सिद्ध होता है कि प्राणी ने कई शरीर धारण किये हैं। इससे जन्मान्तर से आना सिद्ध होता है।
आज के ही उत्पन्न हुए बालक में स्तन-पान की इच्छा देखी जाती है। वह इच्छा पहली इच्छा नहीं है । क्योंकि जो इच्छा होती है वह अन्य इच्छापूर्वक होती है। जैसे पाँच-सात वर्ष के बालक की इच्छा । स्तन-पान की इच्छा भी, इच्छा है इसलिए वह पहले पहल नहीं हुई किन्तु उसके पूर्व की इच्छा से उत्पन्न हुई है। जिसने जिस पदार्थ का कभी उपयोग न किया हो उसे उस विषय की इच्छा नहीं हो सकती। उसी दिन का पैदा हुआ बालक माता के स्तन का पान करने की इच्छा करता है । यदि उसने पहले कभी स्तन-पान न किया होता तो उसे यह अभिलाषा कभी पैदा न होती। बालक को स्तन-पान की अभिलाषा होती है इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उसने पहले भी माता के स्तन का पान किया है। इससे जीव का परलोक में गमनागमन करना सिद्ध होता है।
ऊपर दिया हुआ चित्र का दृशन्त भी संगत नहीं है क्योंकि वह वैषम्य दोष से दुष्ट है। चित्र अचेतन है अतः वह गमनागमन नहीं कर सकता है। आत्मा तो सचेतन है अतः वह गमनागमन कर सकता है। जिस प्रकार एक व्यक्ति एक गांव में कुछ दिन रहने के बाद दूसरे गाँव में
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