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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धूत नाम षष्ठ अध्ययन - प्रथमोद्देशकः GAU Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गत पञ्चम अध्ययन में लोक के सार भूत संयम और मोक्ष का प्रतिपादन किया गया है। साथ ही साथ लोक में से उक्त सार खींचने के लिए साधकों को प्रेरणा की गई है। यह भी साथ ही समझना चाहिए कि जब तक चित्तवृत्ति मलिन है तब तक वह सार खींचने में सर्वथा असमर्थ है। अतएव लोकसार को खींचने के लिए और खींचने के बाद उसको पचाने के लिए चित्त की अनिवार्य रूप से शुद्धि होनी ही चाहिए। व इस अध्ययन में चित्तशुद्धि के उपाय सूत्रकार बताते हैं । इस अध्ययन का नाम धूत है। धूत का अर्थ है-धुन डालना या धो डालना। जिस प्रकार aa की मलिनता को दूर करने के लिए उसे धोया जाता है उसी तरह आत्मा की मलिन वृत्ति के परिशोधन के लिए उस पर लगे हुए कर्म-मैल को धो डालना चाहिए । नियुक्तिकार ने कहा है Gayi Tत्था भावयं कम्म विहं । अर्थात् — वस्त्रादि को धोना — उसका मैल दूर करना द्रव्य धूत है और आत्मा पर लगे हुए आठ कर्मों को धुनना - कर्ममैल को धोना - उसे दूर करना भावधूत है। भावधूत से ही यहाँ अभिप्राय है श्रुतएव नियुक्तिकार उसको विशेष स्पष्ट करते हैं: अहियासित्वसग्गे दिव्वेमाणस्सए तिरिच्छेय । जो ages कम्माई भावघुयं तं वियाणाहि ॥ अर्थात् — जो देव, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग को दृढ़ता से सहन करके संसार रूपी वृक्ष के बीजभूत आठ प्रकार के कर्मों को धुनता है, उन्हें दूर करता है वह भावधूत समझना चाहिए । क्रिया और कारक के अभेद की अपेक्षा कर्म का धुनना भावधूत है । यहाँ यह और ध्यान में रखना चाहिए कि जैसे वस्त्र पर कोई अन्य रंग चढ़ाने के लिए उस वस्त्र पर चढ़े हुए पहिले वाले रंग को और मैल को धो डालना जरूरी होता है तभी अच्छा 'ग चढ़ सकता है। अन्यथा नवीन रंग जैसा चढ़ना चाहिए वैसा नहीं चढ़ता। उसमें चमक नहीं आती। इसी तरह चिंत्त पर संयम और मोक्ष का रंग चढ़ाने के लिए पहिले के अभ्यासों को और मलिनता को दूर करना होगा तभी नये संस्कार अच्छी तरह जम सकेंगे। अगर ऐसा न किया जायगा तो पहिले के संस्कार नवीन संस्कारों में बाधा डाले बिना नहीं रह सकेंगे। अतएव पूर्वग्रह, पूर्वाभ्यास से मलिन चित्त-पट को शुद्ध बनाने की अनिवार्य आवश्यकता है। जिस प्रकार जिस पट्टी पर पहिले अक्षर लिखे हुए हैं उस पट्टी पर दूसरे स्पष्ट अक्षर पहिले के अक्षरों को मिटाये बिना नहीं लिखे जा सकते हैं। स्पष्ट अक्षर लिखने के पहिले पट्टी को धोकर साफ करने की आवश्यकता है इसी तरह चित्तरूपी पट्टी पर संयम के अक्षरों को लिखने के For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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