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तृतीय अध्ययन चतुर्थोद्देशक ]
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कहते हैं जिस प्रकार पत्थर का स्तम्भ कभी झुक नहीं सकता उसी प्रकार जो कदापि न झुके वह अनन्तानुबन्धी मान है । माया का स्वभाव कुटिल है अतः वक्रता का दृष्टान्त कहते हैं-जिस प्रकार बॉस की जड़ का टेढ़ापन कदापि नहीं मिटता इसी प्रकार जो माया कदापि दूर न हो वह अनन्तानुबन्धी माया है। लोभ एक प्रकार का रंग है जो मनुष्यों के मन को रंगता है। अतएव रंग के दृष्टान्त से यह स्पष्ट करते हैंजिस प्रकार किरमिची रंग लगने पर नहीं छूटता उसी तरह अनन्तानुबन्धी लोभ कदापि नहीं छूटता। यह अनन्तानुबंधी का स्वरूप है।
अप्रत्याख्यानावरण-जिस कषाय के उदय से जीव देशविरति-रूप प्रत्याख्यान भी नहीं कर सकता है वह अप्रत्याख्यानावरण है। इससे श्रावक-धर्म की प्राप्ति नहीं होती। प्रायः इससे तिर्यञ्च गति होती है और स्थिति एक वर्ष की है।
अप्रत्याख्यानी क्रोध-जिस प्रकार पृथ्वी में पड़ी हुई दरारें वर्षा के आने पर मिलती हैं इसी प्रकार जो क्रोध बड़ी कठिनाई से शान्त हो ।
अप्रत्याख्यानी मान-जिस प्रकार हड्डी को नमाना अत्यन्त कठिन है तदपि अति-परिश्रम से वह झुकाई जा सकती है इसी प्रकार जो मान अति कठिनाई से दूर हो ।
अप्रत्याख्यानी माया-जिस प्रकार मेंढ़े के सींग का टेढ़ापन निकालना अति कठिन है उसी प्रकार जो माया बड़ी कठिनाई से दूर हो ।
अप्रत्याख्यानी लोभ-जिस प्रकार गाडी के कीट का रंग बड़ी कठिनाई से छूटता है इसी प्रकार जो लोभ बहुत कठिनाई से दूर हो।
प्रत्याख्यानावरण-जिस कषाय के उदय से सर्वविरति प्राप्त नहीं होती वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है । यह साधु-वृत्ति नहीं होने देता । इससे प्रायः मनुष्य गति का आयुष्य बँधता है। इसकी स्थिति चार मास की है।
प्रत्याख्यानावरण क्रोध-जिस प्रकार रेत में पड़ी हुई दरार अल्प महनत से मिल जाती है उसी तरह जो क्रोध थोड़ी महनत से दूर हो जाय।
प्रत्याख्यानावरण मान-जिस प्रकार काष्ठ अल्प महनत से नम जाता है उसी प्रकार जो मान अल्प महनत से दूर हो ।
प्रत्याख्यानावरण माया-जिस प्रकार चलते हुए बैल के पेशाब करने की लकीर टेढ़ी होती है और वह टेढापन धूलादि गिरने पर मिटता है इस प्रकार जो माया कुछ कठिनाई से दूर हो ।
प्रत्याख्यानावरण लोभ-जिस प्रकार काजल का रंग अल्प कठिनाई से छूट जाता है उसी प्रकार जो लोभ थोड़े से परिश्रम से छूट जाय।।
संज्वलन कषाय-जिस कषाय के उदय से यथाख्यात-चारित्र की प्राप्ति न हो वह संज्वलन कषाय है।
संज्वलन क्रोध-जिस प्रकार जल में खींची हुई लकीर शीघ्र मिट जाती है इस प्रकार जो क्रोध शीघ्र ही मिट जाय।
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