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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २४८ ] - [ आचाराङ्ग-सूत्रम् दूसरी बात यह है कि अगर भूतों से चैतन्य का पैदा होना माना जाय तो किसी भी अवस्था में मृत्यु नहीं हो सकती। क्योंकि मृतक शरीर से भी पाँचों भूत पाये जाते हैं । अगर यह कहो कि मृतक शरीर में वाय और तेज नहीं है अतः वहाँ चैतन्य नहीं रहता है तो यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि मृतक शरीर में सूजन देखी जाती है अतः वहाँ वायु का सद्भाव है और मवाद की उत्पत्ति के कारण उसमें तेज भी मानना पड़ेगा। इसलिये पाँचों भूतों की सदा विद्यमानता के कारण कभी मृत्यु नहीं होनी चाहिए किन्तु मृत्यु होती है अतः यह मानना चाहिए कि भूतों के अतिरिक्त आत्मा नाम का द्रव्य है और चेतन्य उसका गुण है। अनुभव समस्त प्रमाणों में मुख्य है । उसके आधार पर किया हुआ निर्णय सदा असंदिग्ध होता है । अनुभव से यह प्रतीति होती है कि 'मैं सुखी हूँ, मैं दुखी हूँ"। इसमें पाया हुआ अहं (मैं) पद प्रात्मा का द्योतक है। शरीर में यह अनुभव होता है यह शंका अयोग्य है क्योंकि साथ ही यह अनुभव भी होता है कि “मेरा शरीर” इस वाक्य से शरीर का अधिष्ठाता कोई होना चाहिए । वह आत्मा है। ___ श्रात्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने वाली अनेक युक्तियाँ हैं जैसे एक ही माता-पिता की संतान में बहुत अन्तर देखा जाता है। कोई उद्दण्ड, क्रोधी और अज्ञानी होता है और कोई विनयी, शान्त और बुद्धिमान होता है । समान संयोगों में पाले-पोसे जाने पर भी दो भाइयों में बहुत अन्तर पाया जाता है । इसका कारण पूर्व-संस्कार है । युगल-जात बालकों के स्वभाव में भिन्नता का कारण पूर्व-संस्कार नहीं तो क्या है ? पूर्व-संस्कार सिद्ध होने पर आत्मा का परलोक-गमन स्वतः सिद्ध हो जाता है। पूर्व संस्कारों को स्पष्ट करने वाला जातिस्मरण ज्ञान है । वर्तमान काल में भी पुनर्जन्म को सिद्ध करने वाली अनेक सत्य घटित घटनाएँ समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं। शिकोहाबाद नामक नगर में वेश्या का एक लड़का था। उसे जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। उसने कहा मैं ब्राह्मण हूँ, पास के ग्राम में मेरे भाई और मेरी स्त्री है। मेरी ज़मीन गिरवी रखी हुई थी। मैंने कलकत्ते में नौकरी कर उसे छुड़ाई थी। उसने अपने आये हुए कुटुम्बियों को पहचान लिया और अनेक स्त्रियों के बीच में खड़ी हुई अपनी पत्नी को पहचान ली और उसके वक्षस्थल पर एक फोड़ा था उसका भी उसने जिक्र कर सुनाया। इसी तरह दिल्ली में शान्ताबाई नामक बालिका ने अपना पूर्व वृत्तान्त बताया जो जांच करने पर सही साबित हुआ। ये घटनाएँ पुनर्जन्म को सिद्ध करती हैं। पुनर्जन्म सब युक्तियों से सिद्ध है तब अवश्य यह विचार करना चाहिए कि यह आत्मा भूतकाल में कैसी स्थिति में था और भविष्य में इसकी क्या स्थिति होगी । भूतकाल और भविष्य काल पर विचारणा करने से आत्म-जागृति होती है और यह आत्म जागृति जीवन को एक दिव्य आनंद समर्पण करती है। यह विवेचन करने के बाद अब सूत्रकार दूसरी तरह के अज्ञानियों की मान्यता बताते हैं। वे आत्मा को मानते हैं और उसे भवान्तर-गामिनी भी स्वीकार करते हैं परन्तु यह कहते हैं कि जीव जैसा भूतकाल में सुखी या दुखी था वह भविष्य काल में भी वैसा ही सुखी या दुखी रहेगा । पुरुष सदा पुरुष ही रहेगा, स्त्री सदा स्त्री ही रहेगी, पशु सदा पशु ही रहेंगे, इत्यादि । जो भूतकाल में जिस रूप में था वह भविष्य में भी वैसा ही रहेगा। ___ उनका यह मानना केवल युक्ति-बाधित ही नहीं परन्तु हास्यास्पद भी है । अगर यह मान्यता मान ली जाय तो सर्व पुरुषार्थ का ही अभाव हो जायगा । जब जीव को यह ज्ञात हो जाय कि उसकी For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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