________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२३६ ]
"
[आचाराग-सूत्रम्
प्राप्त हुआ है। इस अनमोल अवसर को यों ही न गँवाना चाहिए और प्राणियों के दस प्रकार के प्राणों में से किसी भी प्राण को पीड़ा न पहुँचाते हुए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। प्राणियों को पीड़ा न पहुँचाना यही बड़ा धर्म है । पर पीड़ा से बढ़कर पाप नहीं है। अतः त्यागी को पूर्ण अहिंसक बनना चाहिए। - श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे प्रिय जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी से मैंने इस प्रकार सुना, सो तुझे कहता हूँ।
-उपसंहारइस उद्देशक में त्याग-मार्ग की आवश्यकता और अनिवार्यता का निरूपण किया गया है। यह निरूपण करने के पश्चात् त्यागी को किन किन गुणों की आराधना करनी चाहिए यह बताया गया है। सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह एवं इन्द्रियविजय इन व्रतों का पालन करने के लिए बहुत ही सुन्दर ढंग से उपदेश दिया गया है।
卐
FF555 इति द्वितीयोद्देशकः
ॐ
For Private And Personal