________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तृतीय अध्ययन द्वितीयोद्देशक ]
[ २२६ शब्दार्थ-अयं पुरिसे यह संसार सुखाभिलाषी प्राणी । खलु निश्चय से।अणेगचित्ते= अनेक संकल्प-विकल्प करता है। से=वह। केयणं चालनी को या समुद्र को। अरिहए पूरित्तए= भर देने का प्रयत्न करता है । से अण्णवहाए वह दूसरों को मारने के लिए। अएणपरियावाए= दूसरों को सताने के लिए । अएणपरिग्गहाए दूसरों को अपने अधीन करने के लिए । जणवयवहाए देश को नष्ट करने के लिए । जणवयपरियावाए देश को हैरान करने के लिए । जणवयपरिग्गहाए देश को अपने अधिकार में रखने के लिए तैयार होता है।
भावार्थ-संसार-सुखाभिलाषी पुरुष अनेक संकल्प-विकल्पों वाला होता है। वह मग-तृष्णा के जल के समान सुख के पीछे दौड़ता है और चालनी के अन्दर समुद्र को भरने की कोशिश करता है, लोभरूपी समुद्र को पाट देने की मिथ्या आशा रखता है । इसके लिये वह दूसरों को मारने के लिये, सताने के लिये और दूसरों पर अधिकार चलाने के लिये तैयार रहता है । और यही नहीं वरन् देश के देश डुबो देने, परेशान करने और उनपर शासन करने के लिये तैयार होता है ।
___ विवेचन-इसके पूर्ववर्ती सूत्रों में निष्कर्मदर्शी बनने के लिए अप्रमत्त रहने का उपदेश दिया है। तत्पश्चात् प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार प्रमादी की दशा का वर्णन करते हैं । कषायादि प्रमाद से मत्त प्राणियों का स्वरूप इस सूत्र में बताया गया है । परम-कृपालु सूत्रकार का उद्देश्य संसारी जीवों को सच्चा प्रतिबोध देकर जागृत करने का है अतएव वे अन्वय, व्यतिरेक, विधिमार्ग और निषेधमार्ग द्वारा विविध प्रणाली से एक ही बात को पूर्ण तौर से स्पष्ट कर देते हैं ताकि प्रत्येक-व्युत्पन्नमति और मन्दमति वाले-उस तत्त्व को हृदयंगम कर सके । इसी आशय से पहिले अप्रमाद का वर्णन कर उसमें प्रवृत्ति करने का उपदेश दिया है और इस सूत्र में तद्विरोधी प्रमाद का वर्णन कर उससे निवृत्ति करने का उपदेश फरमाते हैं।
संसार का प्रत्येक प्राणी सुखाभिलाषी है । हरेक प्राणी सुख के लिए ही प्रवृत्ति करता है। मनुष्यों की प्रत्येक प्रवृत्ति के अन्दर सुख पाने की भावना काम करती होती है। परन्तु प्रत्येक प्राणी यह नहीं जानता कि वस्तुतः सुख क्या है और सुख का उद्गम क्या है ? सुख का सरोवर कहाँ लहराता है ? यह एक ऐसा पहलू है जिसका संसार के बहुत ही विरले प्राणियों को विचार आता है ? संसार में बहुतेरों की ऐसी भ्रामक मान्यता है कि धन एवं कामभोगों से सुख प्राप्त होता है । धनवालों और विषयी-जनों से पूछो कि तुम सुखी हो ? वे अन्तःकरण पर हाथ रखकर कहेंगे कि हम सुख के लिए तरसते है, हमें सुख की झलक भी प्राप्त नहीं हुई है।
___ यूनान के बादशाह सिकन्दर ने हिन्दुस्तान के कुछ भाग के सिवाय संसार के एक बहुत बड़े भाग पर अपना साम्राज्य स्थापित किया था और देश-विदेशों से उसने अपार धन-राशि एकत्रित की थी। उसे अपने साम्राज्य और धन का अभिमान था । लेकिन जब अन्तिम समय नजदीक आया तब सिकन्दर को विचार आया कि इस विशाल भूभागमें से-जिसके लिए मैंने इतनी लड़ाईयों लड़ी-एक भी इञ्च जमीन
और इस अथाह धनराशि में से एक भी पाई मेरे साथ न आएगी। मैं खाली हाथ जाऊंगा। सिकन्दर ने खूब सोचा । आखिर उसने अपने चोबदार को कहा कि मेरे मरने के बाद जब मेरा जनाजा निकाला जावे तो मेरे दोनों हाथ कफन से ढंके न जॉय लेकिन खुले रखे जाय और जब लोग अचरज से इसके लिए
For Private And Personal