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द्वितीय अध्ययन पंचमोद्देशक ]
[ १६७ .
गया । जब स्वप्न में पूर्णचन्द्र देखने वाले भिखारी को वह हाल मालूम हुआ तो वह सोचने लगा-जो स्वप्न राजपूत ने देखा था वही मैंने भी देखा था । उसे राज्य मिला और मुझे एक रोट । मैं अब फिर सोता हूँ और फिर पूर्णचन्द्र का स्वप्न देखकर राज्य प्राप्त करूँगा। क्या भिक्षुक फिर वह स्वप्न देखकर राज्य प्राप्त कर सकता है ? बहुत ही कठिन है। पर नरभव प्राप्त कर खो देने वाले को पुनः उसकी प्राप्ति होना इससे भी कठिन है।
(६) मथुरा के राजा जितशत्र के एक पुत्री थी। राजा ने उसका स्वयंवर किया। उसमें काठ की एक पुतली बनाई। पुतली के नीचे आठ चक्र लगाये। चक्र निरन्तर घूमते रहते थे । पुतली के नीचे तैल से भरी हुई एक कड़ाई रक्खी गई। राजा ने यह घोषणा की कि तैल में पड़ने वाली पुतली की परछाई देखकर आठ चक्रों के बीच फिरती हुई पुतली की बाई आँख की कीकी को वाण द्वारा वेधने वाले राजकुमार को मेरी कन्या व्याही जायगी । स्वयंवर में सम्मिलित हुए समस्त राजा और राजकुमार ऐसा करने में असमर्थ रहे । अतएव जिस प्रकार उस पुतली के बाम नेत्र की कीकी को वेधना कठिन है उसी प्रकार वृथा व्यतीत किए हुए मानव-भव को पुनः प्राप्त करना दुर्लभ है।
(७) एक बड़ा सरोवर था । उस पर काई छाई हुई थी। पर बीच में एक छोटा-सा छिद्र था जहाँ काई नहीं थी। संयोगवश एक कछुए ने अपनी गर्दन उसमें डाली और ऊपर की ओर दृष्टि फेंकी तो उसे शरद् पूर्णिमा के चन्द्रमा के दर्शन हुए। उसके लिए वह दृश्य अपूर्व था। अतः अपने कुटुम्ब के व्यक्तियों को चन्द्र दिखलाने की इच्छा से उसने पानी में डुबकी लगाई। जब वह उन्हें साथ लेकर आया तब तक छेद बन्द हो गया था । अब दूसरी बार चन्द्र-दर्शन होना अति कठिन है इससे भी ज्यादा कठिन खोये हुए नरभव को पुनः पाना है।
(८) स्वयंभू-रमण समुद्र के एक किनारे गाड़ी का एक जूश्रा डाल दिया जाय और एक 'किनारे पर उसका कीला डाल दिया जाय । दोनों समुद्र की तरंगों से इधर-उधर भटकते-भटकते मिल जाएँ और वह कीला जूए के छेद में घुस जाय । यह घटना अत्यन्त कठिन है इसी प्रकार मानव-भव की पुनः प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है। .. (६) जिस प्रकार देवाधिष्टित पाशों से खेलने वाले पुरुष को सामान्य पाशों से खेलकर हराना अत्यन्त कठिन है, उसी प्रकार मनुष्य-भव पाकर विशिष्ट धर्म उपाजन न करने वाले को पुनः मानव-पर्याय की प्राप्ति होना कठिन है।
(१०) एक विशाल स्तम्भ के अत्यन्त सूक्ष्म टुकड़े करके कोई देव एक नली में भर ले और सुमेरू पर्वत की चोटी पर जाकर जोर से फूंक मार कर उन तमाम टुकड़ों को (अणुओं को ) हवा में उड़ा देवे । क्या कोई पुरुष उन समस्त अणुओं को इकट्ठा करके फिर उस रतम्भ की रचना कर सकता है ? अत्यन्त कठिन है । पर कदाचित् दैविक शक्ति से ऐसा हो जाय परन्तु मनुष्य-भव पाकर उसे वृथा गंवा देने वाले को मनुष्य-अव की पुनः प्राप्ति होना उससे भी अधिक कठिन है।
उपर्युक्त दस दृष्टान्तों से मनुष्य भव की दुर्लभता की कल्पना स्थूल बुद्धि वाले भी कर सकते हैं। नरभव का कितना अनमोल मूल्य है यह इनसे आँकना चाहिए। ऐसे सुदुर्लभ मानव-जीवन को जो प्राणी केवल विषय-भोगों में पूरा कर देते हैं वे कितने अविवेकी हैं ? कहा है
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