SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५० ] [ श्राचाराङ्ग-सूत्रम् (१३) मालाहड़े - जहाँ पर चढ़ने में कठिनाई हो वहाँ से उतार कर दिया जाने वाला आहार लेना या इसी प्रकार की नीची जगह से उठाकर दिया जाने वाला आहार लेना । (१४) छज्जे - निर्बल पुरुष से छीना हुआ अन्याय पूर्वक लिया हुआ आहार लेना । (१५) अणिसिट्टे - साझे की वस्तु साझेदार की सम्मति के बिना लेना । (१६) भोयर -- गृहस्थ के लिए राँधते हुए साधु के लिए अधिक राँधा हुआ आहार लेना । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir साधु के द्वारा लगने वाले आहार सम्बन्धी दोष उत्पादना दोष कहलाते हैं । वे भी सोलह हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं:- ( १ ) धाई (२) दूई ( ३ ) निमित्त ( ४ ) आजीवे ( ५ ) वरणी मगे ( ६ ) तिमिच्छे (७) कोहे (८) माणे ( ६ ) माया (१०) लोहे ( ११ ) पुवि पच्छा संथव ( १२ ) विज्जा (१३) मंते (१४) चुन्ने (१५) जोगे (१६) मूलकम्मे । ( १ ) धाई - गृहस्थ के बाल-बच्चों को धाई की तरह खेलाकर आहार लेना । (२) दुई - गृहस्थ का गुप्त या प्रकट संदेश उसके स्वजन से कह कर आहार लेना । (३) निमित्ते - निमित्त द्वारा गृहस्थ को लाभ-हानि बताकर आहार लेना । (४) आजीवे - गृहस्थ को अपना कुल अथवा जाति बताकर आहार लेना । (५) वणीमगे - भिखारी की तरह दीनता पूर्ण वचन कह कर आहार लेना । (६) तिमिच्छे - चिकित्सा बताकर आहार लेना । (७) कोहे – गृहस्थ को डरा-धमका कर या शाप का भय दिखाकर आहार लेना । (८) माणे - 'मैं लब्धि वाला हूँ तुम्हें सरस आहार लाकर दूँगा' इस प्रकार साधुओं से कहकर आहार लाना । (६) माया - छल-कपट करके आहार लेना । (१०) लोहे - लोभ से अधिक आहार लेना । (११) पुव्वि पच्छा संथव - आहार लेने से पूर्व या पश्चात् देने वाले की तारीफ करना । (१२) विज्जा - विद्या बताकर आहार लेना । (१३) मंते -- मोहनमन्त्र आदि मन्त्र सिखाकर आहार लेना । (१४) चुने- अदृश्य हो जाने का या मोहित करने का अंजन बताकर आहार लेना । (१५) जोगे - राज वशीकरण या जल-थल में समा जाने की सिद्धि बताकर आहार लेना । (१६) मूलकम्मे - गर्भपात आदि औषधि बताकर या पुत्रादि जन्म के दूषण निवारण करने के लिए मघा, ज्येष्ठा आदि दुष्ट नक्षत्रों की शान्ति के लिए मूल स्नान बताकर आहार लेना । एषरणा सम्बन्धी दोष श्रावक और साधु दोनों के निमित्त से लगते हैं। उनके दस भेद इस तरह हैं(१) संकिय (२) मक्खिय (३) निक्खित्त ( ४ ) पिहिय ( ५ ) साहरिय ( ६ ) दायग ( ७ ) परिणय (८) उम्मीसे ( ६ ) लित्त (१०) छड्डिय । (१) संकिय - गृहस्थ को और साधु को आहार देते-लेते समय श्राहार की शुद्धि में शंका होने पर भी आहार देना - लेना । (२) मक्खिय- हथेली की रेखा और बाल सचित्त जल से गीले होने पर भी आहार देना-लेना । (३) निक्खित्त - सचित्त वस्तु पर रखा हुआ आहार देना - लेना । (४) पहिय - सचित्त वस्तु से ढँके हुए आहार को देना - लेना । For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy