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द्वितीय अध्ययन द्वितीय उद्देशक ]
[१०५
हाँ, ज्ञान का परम्परा फल संयमविषयक रति हो सकता है परन्तु साक्षात् फल तो मात्र अज्ञान की निवृत्ति होना ही है । अतः बुद्धिमान को भी मोहोदय के कारण संयम में अरति उत्पन्न हो जाती है जैसा कि
बलवानिन्द्रियग्रामः पण्डितोऽप्यत्र मुह्याति । अतः उपरोक्त शंका को स्थान नहीं है। दूसरी बात केवल अरति-प्राप्त को ही उपदेश नहीं है परन्तु सामान्यतः उपदेश है कि बुद्धिमान को संयम में अरति नहीं करनी चाहिये।
जो संयम में अरति नहीं करता है वह अल्पकाल में ही आठ कर्मों से मुक्त हो जाता है अथवा संसार के बन्धनों से, अनासक्ति के कारण मुक्त हो जाता है, जैसे भरत चक्रवर्ती।
जो भगवान की आज्ञा में विचरण नहीं करते हैं वे कण्डरीक की भाँति चारगति रूप संसाररूपी समुद्र में डूबे रहते हैं, यह बताते हुए सूत्रकार फरमाते हैं:
प्रणाणाय पुट्ठावि एगे नियटृति मंदा मोहेण पाउडा। संस्कृतच्छाया—अनाज्ञया स्पृष्टाः अपि एके निवर्तन्ते मंदा मोहेन प्रावृत्ताः ।
शब्दार्थ-मंदा अज्ञानी । मोहेण पाउडा=मोह से घिरे हुए । एगे एक एक प्राणी । पुट्ठावि-परीषह उपसर्ग आने पर। अणाणायचीतराग की आज्ञा से विपरीत चलकर। नियटृति= संयम से पतित होते हैं।
भावार्थ-कितने ही कर्तव्य और अकर्त्तव्य के विवेक से नहीं, अज्ञानी, मोह के उदय से मूढ़ बने हुए, कण्डरीक के समान प्राणी, परीषह और उपसर्ग के आने पर परम हितकारी वीतराग देव की आज्ञा से विपरीत आचरण करके संयम से भ्रष्ट बनते हैं।
विवेचन-परीषह और उपसर्ग साधक के जीवन की कसौटी और संयम के मापयंत्र हैं। जो संयमी परीषह और उपसर्ग की कसौटी पर कसने पर खरा उतरता है, सही प्रमाणित होता है वही सच्चा संयमी है । जो संयम-सा दिखावा करता है परन्तु उपरोक्त कसौटी पर फसने पर नकली सिद्ध होता है तो वह नाम धारी है। सोना जैसे कसौटी पर कसने पर सोना प्रमाणित होता है और आदरणीय होता है परन्तु सोने के समान पीला दिखने वाला पीतल कसौटी पर कसे जाने के बाद तिरस्कृत होता है उसी तरह परिषह और उपसर्ग रूप कसौटी पर भी जो सही साबित होते हैं वे ही भगवान की आज्ञा के आराधक हैं । सच्चा संयमी परीषह और उपसर्ग आने पर और भी अधिक संयम में दृढ़ होता है-जैसे सोना
आग में जलने से और भी अधिक चमकता है और निखर जाता है ठीक वैसे ही सच्चे संयमी में अगर कोई दुर्गुण भी हों तो परीषह और उपसर्ग की आंच में सब भस्म हो जाते हैं और वह शुद्ध स्वर्ण के समान शुद्ध चारित्र सम्पन्न बन जाता है। इसके विपरीत संयम का ढोंग करने वाले कायर जीव परीषह उपसर्ग पाने पर अधीर और व्याकुल होकर वीतराग की आज्ञा से अन्यथा आचरण करके संयम भ्रष्ट हो जाते हैं। ऊपर का बाह्य प्रदर्शन रूप कपट का आवरण हट जाने से उनकी कलई खुल जाती है। आखिर
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