SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 986
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकृतिविज्ञान विकृत शारीर-घातक रक्तक्षय के कुछ विक्षत तो प्रथमजात अथवा रोग के साथ आरम्भ से ही रहते हैं । तथा अधिकांश लक्षण रक्तक्षय के कारण अथवा रक्तनाश के कारण उत्पन्न होते हैं। दो लक्षण जो प्रमुखतया देखे जाते हैं इनमें एक अस्थिमज्जा में बृहद्रक्तरुहीय प्रकार के कोशाओं की संख्यावृद्धि तथा दूसरा लोहोत्कर्ष (siderosis ) होता है | ब्वायड ने विक्षतों के अनुसार निम्नलिखित ५ समूह बनाए हैं१. रक्तक्षय के कारण बने हुए विक्षत जिनमें स्नैहिक विहास तथा रक्तस्रावादि आते हैं। २. अस्थिमज्जा के परिवर्तन । ३. लोहोत्कर्ष जिसके साथ साथ जालकान्तश्छदीय संस्थान के कोशाओं द्वारा भक्षिकोशोत्कर्ष (phagocytosis ) करना। ४. महास्रोतस् के विक्षत, तथा ५. वातनाडी संस्थान के वित्तत । विविध अङ्गों पर प्रभाव-घातक रक्तक्षयी की त्वचा का वर्ण नीबुआ ( lemonyellow) हो जाता है । जो पाण्डुरता ( pallor ) रक्तक्षय में देखी जाती है उसका यहाँ अभाव ही रहता है। उसका मेद भी नीबुआ रंग का पीला तथा प्रभूत मात्रा में मिलता है इस कारण इस रोग में कार्य (wasting ) नहीं ही मिलता। यकृच्चिकित्सा के कारण आज कल नीबुआ रंग के रोगी देखना कठिन है। पेशियाँ खूब लाल रंग या रक्तबच ( reddish brown ) वर्ण की और यथावत् रहती हैं उनमें कोई अन्तर देखने में नहीं आता। लस्य कलाओं ( serous membranes) में नीलोहांकीय रक्तस्राव (petechial haemorrhages) होते हुए देखे जा सकते हैं। सजीवावस्था में दृष्टिपटल ( retina) में ऐसे रक्तस्राव का प्रत्यक्ष दर्शन किया जा सकता है। उपरोक्त परिवर्तनों का मुख्य कारण होता है स्नैहिक विह्रास ( fatty dege. neration ) तथा स्नैहिक विहास बनता है रक्तक्षय के द्वारा । यह स्नैहिक विह्रास हृदय में खूब देखा जाता है । इसके कारण हृदय पाण्डुर और श्लथ हो जाता है । वामनिलय की प्राचीर तथा मांसस्तम्भी पेशियों ( papillary muscles ) में एक पीतवर्ण का सिध्मन (yellow speckling ) हो जाता है जिसे ,शबैस्ट या मुरझाई हुई पत्ती ( faded leaf ) कहते हैं। यह लक्षण अत्यधिक रक्तक्षय की अवस्था में ही मिलता है। मृत्यु यदि शीघ्र हो गई तो यह कम मिलता है या नहीं भी पाया जाता। __यकृत् में भी स्नैहिक विहास तथा लोहोत्कर्ष ये दो परिवर्तन देखने में आते हैं। स्नैहिक विहास अत्यन्तावस्था का हो सकता है। यकृत् खण्डिकाओं के बाह्य दो तिहाई भाग में शोणायसि ( haemosiderin ) के पीतकण संग्रहीत हो जाते हैं जिनकी प्रतिक्रिया ( reaction ) अयश्यामनील (prussian blue ) वर्ण की हुआ For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy