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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir I 11 IV रुधिर वैकारिकी लैण्डस्टीनर ( १९०१ ई०) ने अक्षरनिर्धारण करने की नयी विधि उपस्थित की है और वही आजकल चालू भी है। तीनों प्रकार का वर्गीकरण आधुनिकों ने जिस प्रकार प्रकट किया है वह हम उद्धृत करते हैं। रक्त-वर्ग लस रुधिराणु जान्स्की मौस लैण्डस्टीनर प्रसमूहि प्रसमूहिजन IV A B ओ (कुछ भी नहीं) A तथा B II Ab A. III III Ba B 0 . तथा b 0 (कुछ भी नहीं) ए बी वर्ग ( मौस I) लस में कोई प्रसमूहि नहीं होती इसलिए वह किसी भी प्रकार के रुधिराणु के साथ प्रसमूहन नहीं करता है। इसीलिए इसे सर्वग्राहक (universal recipient ) कहते हैं। ओ वर्ग ( मौस IV ) में कोई प्रसमूहिजन (agglutinogen) नहीं रहता है इस कारण वह किसी के भी लस के साथ प्रसमूहन नहीं कर सकता । इसलिए इसे सर्वप्रदाता (universal donor ) कहा जाता है। इस कारण जहां अत्यावश्यकता पड़ जावे और ग्राहक के लस तथा दाता के रुधिराणुओं को एकत्र कर प्रसमूहन परीक्षा के लिए समय न हो तथा तुरत रक्तदान करना पड़े वहां इस सर्वप्रदाता का उपयोग बिना किसी शङ्का के कर लिया जा सकता है। इसलिए ओवर्ग के व्यक्ति स्वरारक्तावसेचनार्थ सदैव महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। ए (मौस II) वर्ग के व्यक्ति ए वर्ग तथा ओ वर्ग के व्यक्ति का रक्त ले सकते हैं। बी वर्ग (मौस III) के व्यक्ति बी वर्ग तथा ओ वर्ग के व्यक्ति का रक्त प्रयोग में ला सकते हैं । तथा ओ वर्ग (मौस IV) के व्यक्ति केवल अपने ओ वर्ग के व्यक्तियों का रक्त ही काम में ला सकते हैं पर उनका रक्त अन्य सभी वर्गों के कार्य में भा सकता है। वर्ग A B(मौस I) जैसा कि अभी कहा जा चुका है किसी भी वर्ग के व्यक्ति के रक्त का उपयोग कर सकते हैं। रक्तावसेचन (ट्रांसफ्यूजन आव ब्लड) का अनेक बार प्रयोग करने से ज्ञात यह हो रहा है कि इन ४ वर्गों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य वर्ग हैं। अस्तु, उपर्युक्त ४ वर्गों को परम विश्वसनीय मानकर चलने में भी सङ्कटोपस्थिति हो सकती है। अतः दाता का वर्ग ज्ञात होने पर भी यह परमावश्यक है कि ग्राहक के लस के साथ दाता के कोशाओं का सम्मेलन करके देख लिया जावे। और यदि दोनों के मिलने से प्रसमूहन न हो तो रक्तावसेचन किया जाय । ए और बी वर्ग का परीक्षणार्थ रखा हआ लस समय अधिक हो जाने के कारण अथवा संरक्षण में तापांश की वृद्धि हो जाने पर खराब हो सकता है और उसके द्वारा रक्ताणुओं का सम्मेलन सर्वथा गलत परिणाम दे सकता है अतः इन किसी पर भी विश्वास न करके सीधे सीधे ग्राहक के लस और दाता के रुधिराणुओं का तुरत किया गया सम्मेलनपरिणाम ही एकमात्र विश्वास For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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