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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४४ विकृतिविज्ञान blasts ) कहते हैं। इसी कारण ये अर्बुद बहुधा घातक या मारात्मक रूप धारण कर लेते हैं जिन्हें पेशीरुहार्बुद ( myoblastoma ) कहते हैं। इन बहुत ही कम पाये जाने वाले अर्बुदों की प्राप्ति मिश्रितअर्बुदों में बहुधा पाई जाती है। वृक्क तथा वृषणों में प्रसवोत्तरकालीन भ्रौण पदार्थों के विकास के साथ रेखित पेशी भी बढ़ कर पेश्यर्बुद का रूप ले लेती है। हृत्प्राचीर में एक सहज पेश्यर्बुद के रूप में जब कभी भी यह उत्पन्न होता है तब उसका सम्बन्ध अधिवृक्कीय अर्बुदों तथा मस्तिष्क जारठ्य ( cerebral sclerosis ) से हो जाता है। अरेखितपेश्यर्बुद-यह चिकनी पेशी (smooth muscle) का अर्बुद है। यह पेशी शुद्ध रूप में कभी अर्बुद का निर्माण नहीं करती अपि तु उसमें बहुत सी योजी ऊति भी सम्मिलित रहती है । यह एक निर्दोष अर्बुद होता है। यह अर्बुद गर्भाशय में बहुत अधिकता से पाया जाता है । इसका स्वरूप तान्तव होने के कारण इसे तन्तुरूप (fibroid ) कह कर पुकारा जाता है जिसका विस्तृत विवरण हम तन्तुपेश्यर्बुद के रूप में तन्वर्बुद के वर्णन के साथ कर चुके हैं। ये सन्तानोत्पत्ति काल में अधिक होते हैं। इसी कारण यौवनारम्भ से पूर्व और रजोनिवृत्तिकाल के पश्चात् वे नहीं मिलते हैं। वे अकेले न होकर बहुत से एक साथ होते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि अरेखित. पेश्यर्बुद शरीर के अन्य भागों में जहाँ अरेखित पेशी पर्याप्त होती है नहीं पाये जाते हैं । वैसे ये बीजकोष, गर्भनाल, और पक्षबन्धनी स्नायु ( broad ligament ) में बनते हैं। महास्रोत में ये बहुपादीय पुंज ( polypoidal masses ) बना लेते हैं। बस्ति और गवीनियों ( ureters ) में भी ये बन सकते हैं। रक्तवाहिनियों की पेशीप्राचीर पर इनका निर्माण नहीं होता। ___ अरेखित पेश्यर्बुद का अण्वीक्षण करने पर उसमें अरेखित पेशी (plain musole) के एक दूसरे से बंधे सूत्र समूह देखे जाते हैं जो तान्तव ऊति के विविध पदार्थ द्वारा पृथक हुए रहते हैं। तर्ककोशीय सङ्कटार्बुद तथा इसके कोशाओं में अन्तर करना कठिन होता है फिर भी विभजनाओं के अभाव लम्बी दण्डसम ( rod like ) न्यष्टि से अरेखित पेश्यर्बुद पहचाना जा सकता है। प्रत्यक्षदर्शन या स्थूलदृष्टि से देखने पर अरेखित पेश्यर्बुद एक तन्वर्बुदके समान दिखलाई देता है। इसका आकार सदैव एक सा नहीं रहता। वह अत्यन्त सूक्ष्म भी हो सकता है और बहुत विशाल भी देखा जा सकता है । यह कठिन और दृढ़ होता है, चारों ओर से भलीभाँति प्रावरित होता है इस कारण आसानी से उच्छेद्य होता है । कटे हुए क्षेत्र को देखने से एक विशिष्ट भ्रमिपूर्ण ( whorled ) सम्पूर्ण धरातल दृष्टिगोचर होता है। इसका कारण यह है कि विभिन्न दिशाओं में बंधे तन्तु कई पृष्ठों (planes ) में कट जाते हैं और श्रमियुक्त रूप बना लेते हैं। ___ इस अर्बुद में विहासात्मक परिवर्तन बहुधा होते हैं। इनमें काचरीय विहास, श्लेष्माभ ( mucoid ) विहास मृदुलन और कभी कभी पूर्ण चूर्णीयन इसमें देखा जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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