SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 928
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ८४३ अस्थ्यर्बुद की वृद्धि जब बाहर की ओर होती है तो वह बहिरस्थ्युत्कर्ष (exostosis ), जब अन्दर की ओर होती है तो अन्तरस्थ्यु त्कर्ष ( enostosis) और जब छिद्रिष्ठ ऊति के अन्दर ही अस्थ्यर्बुद छिपा रहता है तो वह केन्द्रिय अस्थ्यर्बुद ( central osteomata ) कहलाता है। ___ अस्थ्यर्बुदों में व्रणपाक भी हो सकता है और उनमें अतिनाश भी देखा जा सकता है। संघन बहिरस्थ्युत्कप में अशितास्थि ( carious bone) देखी जा सकती है। अस्थ्यशन के कारण अस्थ्यर्बुदीय भाग पृथक् हो जाता है और आराम हो जाता है। अस्थि के पर्यस्थ भाग, मजकीयभाग या कास्थीय क्षेत्र जो उसमें पाये जाते हैं अस्थ्यर्बुद के लिए प्रभवस्थल का कार्य करते हैं। कभी कभी योजी ऊति के अन्य अर्बुद भी अस्थीयित होकर अस्थ्यर्बुद बना देते हैं। पृष्ठवंश की कशेरुकाओं में अथवा करोटि में अस्थ्यर्बुद बनते हुए देखे जाते हैं। करोटि में संघन प्रकार बहुत अधिक मिलता है पर छिद्रिष्ठ प्रकार भी मिल जाता है। यह अधोहनु और करोटिमूल ( base of the skull ) में मिलता है। संघनास्थ्यबुंद का निर्माण करोटि के उन भागों में बहुत करके होता है जो ज्ञानेन्द्रियों ( sepecial sense organs) के पास होते हैं। ऊपरी धरातल पर या निचले तल पर किधर ही अस्थ्यर्बुद करोटि में बना करता है। ये अस्थीयन केन्द्रों ( centres of ossification ) के पास प्रायः उत्पन्न होते हैं। इनकी वृद्धि बहुत मन्थर गति से होती है। वे वेदनाविरहित और प्रस्तरसम कठिन और चिकने होते हैं। जब वे अन्दर की ओर उगते हैं तो मस्तिष्कगुहा में पीडन के कारण क्षोभ या संपीडन ( compression ) कर देते हैं। पीडन का प्रभाव शीर्षण्या नाडियों पर भी पड़ सकता है। (३) पेशी-ति के अर्बुद ( Muscle-Tissue Tumours ) पेश्यर्बुद ( myoma ) साधारणतया दो प्रकार का होता है। एक को रेखित पेश्यर्बुद (rhabdomyoma ) और दूसरे को अरेखित पेश्यर्बुद ( Leomy. oma. ) कहा जाता है। रेखित पेश्यर्बुद-यह बहुत कम पाया जाने वाला अर्बुद है। इसमें रेखित पेशी के द्वारा ही अर्बुद बनता है जैसा कि आशा की जाती है ऐच्छिक पेशी में यह नहीं मिलता। एक विशुद्ध रेखित पेश्यर्बुद की उत्पत्ति हृदय तक ही सीमित रहती हुई. बतलाई जाती है। सम्पूर्ण अर्बुद को देख कर वह पूर्ण विकसित पेशी के द्वारा ही बनता है यह कहना भी युक्तियुक्त नहीं दिखलाई देता। अर्बुद के बहुत से कोशा तो पूर्णतः अपरिपक्वावस्था ( immature stage ) में होते हैं। उन्हें पेशीरुह ( myo.. For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy