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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२६ विकृतिविज्ञान इन कठिन तन्त्वबुंदों में विहासीय परिवर्तन बहुधा देखने को मिलते हैं इस कारण अर्बुद के अन्दर श्लेष्माभ या चूर्णीय ( calcareous ) क्षेत्र बन जाते हैं। इसमें कभी कभी कुछ उपसर्ग लग जाने से आत्मपचन (auto-digestion) भी पाया जा सकता है जिसे जैविक नाश ( necrobiosis) कहते हैं। सम्पूर्ण पुंज काटने पर लाल और सूजा हुआ देखने में आता है। यह तन्तुमासार्बुद में जितना मिलता है उतना शुद्ध तन्त्वबुंद में नहीं। गर्भाशय के प्राचीन अर्बुदों में पेशीतन्तु की वृद्धि न होने के कारण वे शुद्ध तन्त्वर्बुद बन जाते हैं । बीजग्रन्थियों में भी ऐसे अर्बुद कभी कभी पाये जा सकते हैं। मृदुल तन्त्वर्बुद (soft fibroma )-गाढ़ता की दृष्टि से ये बहुत पिलपिले होते हैं। इनमें तान्तव ऊति ढीलीढाली और कम सघन रहती है। इनमें अनेक वाहिनियाँ होने के कारण थोड़े भी आघात से इनसे बहुत अधिक रक्तस्राव होने की आशंका रहती है। इनकी मृदुलता के कारण इनमें और विमेदार्बुद में अन्तर करने में पर्याप्त भ्रम होता हुआ देखा जा सकता है। दूसरी ओर मृदुल तन्वर्बुद और संकटार्बुद में फर्क करना भी कठिन हो जाता है क्योंकि यह अर्बुद बहुधा मारात्मक रूप धारण कर लिया करता है। ये अर्बुद या तो स्थानीय या प्रसर इन दो रूपों में वातनाडी कंचुकों पर देखे जाते हैं। यदि इनका आकार बड़ा हुआ तो वे त्वचा के ऊपर वृन्तयुक्त (pedunculated) अर्बुद के रूप में बन जाते हैं । इनको मृदुतन्तु ( molluseum fibrosum) कहते हैं । यह वातनाडीतन्त्ववृंदोत्कर्ष का ही एक रूप होता है। अन्य कठिन तन्त्वय्दों की भाँति मृदुल तन्त्ववंदों में भी विहासात्मक परिवर्तन पाये जा सकते हैं। वे प्रायः काचर (hyaline ) या श्लेष्माभ प्रकार के होते हैं। काटने पर धरातल स्वच्छ क्षेत्र से युक्त बनता है जिस पर इतस्ततः रक्तस्राव देखा जा सकता है। होटटौट नितम्ब (Hottentot buttock ) इसी प्रसर मृदुल तन्त्व. बुंद का एक उदाहरण है। ___ ये अर्बुद त्वचा या श्लेष्मलकला के नीचे पाये जाते हैं। त्वचा के नीचे बड़े बड़े वृन्त युक्त प्रावरविहीन अर्बुदों का निर्माण होता है। इन्हें उत्सेध (wen) कहते हैं। ये कभी कई होते हैं। कभी कभी त्वचा अथवा उपत्वगीय भागों में स्थूलता बढ़ जाती है । ऐसा नितम्ब, वंक्षण या अन्य भागों में देखा जाता है। इसे श्लोपदिक तन्वर्बुद (elephan. toid fibroma) नाम दिया जाता है। उपर्युक्त प्रसर वृद्धियों के अतिरिक्त अधिक परिलिखित तथा प्रावरित मृदुल तान्तवार्बुद करोटि, वृषण, अन्तपेशीयपटी (inter-muscular septum ), भग आदि अन्य स्थलों पर भी प्रकट हो सकते हैं । इनमें से कुछ तो इतने अधिक कोशावान् होते हैं कि उनको संकटार्बुद से पृथक् करना एक समस्या बन जाती है क्योंकि उनमें विभिन्नन का निश्चित रूप से अभाव पाया जाता है। श्लेषजन की उत्पत्ति नहीं होती और कोशा तन्तुरुह प्रकार का होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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