SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 905
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२२ विकृतिविज्ञान ६. बीजग्रन्थिसङ्कट ( Sarcoma of the ovary)-यह बहुत कम होने वाला सङ्कट है । सम्पूर्ण बीजग्रन्थीय अर्बुदों का ५ प्रतिशत मात्र सङ्कटार्बुद हुआ करता है। यह तारुण्य ( puberty ) में बहुधा मिलता है पर रजोनिरोधकाल में भी देखा जा सकता है। तन्वर्बुद कभी कभी बढ़कर सङ्कट का रूप धारण कर लिया करते हैं। ये त'कोशीय होते हैं। सङ्कट के कारण वृषण की एक बड़ी स्थूल वृद्धि हो जाती है जो बहुत दुष्ट होती है। इसका विप्रथन (dissemination) अतिशीघ्र होता है। प्रसर विस्थाय जो उदरच्छदगुहा में पाये जाते हैं इनके कारण जलोदर बन सकता है और जलोदर में जल के साथ साथ रक्त भी पाया जा सकता है। बहुधा बीजग्रन्थिसङ्कट में गोल अविभिनित कोशा पाये जाते हैं। कभी कभी अविभिनित कर्कट सङ्कट का भ्रम उत्पन्न कर दिया करता है। ७. गर्भाशयसङ्कट-गर्भाशय की काया अथवा ग्रीवा दोनों में से किसी एक स्थल पर सङ्कटोत्पत्ति हो सकती है। गर्भाशयीय सङ्कटार्बुद बहत विरल (rare ) होते हैं। ये गर्भाशय के पेश्यर्बुदों ( myoma) अथवा तन्तुपेश्यर्बुदों ( fibromyoma) से बना करते हैं। यह रजोनिरोधकालीनअवस्था में पेंतालीस से पचास वर्ष की अवश्था तक उत्पन्न होता है। पेश्यादि अर्बुद सभी सङ्कट में परिवर्तित होते हों ऐसा नहीं है केवल दो प्रतिशत के लगभग गर्भाशय के अर्बुद सङ्कटार्बुद में परिणत होते हैं। गर्भाशयिक सङ्कट अन्तरालित ( interstitial) अथवा प्रसर ( diffuse) इन दोनों में से किसी एक प्रकार का हुआ करता है। अन्तरालित सङ्कट सदैव गर्भाशयस्थ योजीऊतियों के अबुंदों से उत्पन्न होता है और आरम्भ में उन्हीं के प्रावर के अन्दर बढ़ता है। प्रसरसङ्कट गर्भाशय की अन्तःकला (endometrium ) के संधार कोशाओं से बनता है अतः आरम्भ में यह उपश्लेष्मलस्तर पर ही होता है। ___ अन्तरालितसंकट तर्कुकोशाओं द्वारा बनते हैं । ये गर्भाशय-प्राचीर में प्रौढ़ावस्था में उत्पन्न होते हैं। ये अन्य अर्बुदों की भाँति गर्भाशय प्राचीर के बाहर की ओर उठ कर उपलस्य अर्बुद ( subumcous tumour ) का रूप भी ले सकते हैं और अन्दर की ओर गर्भाशयगुहा में भी बढ़ सकते हैं। तब एक पुर्वंगक ( polyp ) के समान गर्भाशय ग्रीवा में लटके हुए देखे जा सकते हैं। इनका आकार बहुत बड़ा नहीं होता । इनका रंग आधूसर या आपीत होता है। इनके भीतर रक्तस्रावी तथा कोष्टीय विहास ( cystic degeneration ) के क्षेत्र पाये जाते हैं। ___प्रसरसङ्कट अन्तर्कला में होता है। पर यह सम्पूर्ण गर्भाशय को भी ग्रसित कर ले सकता है। गर्भाशयगुहा बहुपादीय पुओं से भर जाती है और ये पुञ्ज कभी कभी गर्भग्रीवा या योनि के मुख से बाहर भी निकलने लगते हैं। यह तारुण्य में उत्पन्न होता है। इसके कोशा गोल या अण्डाकार होते हैं और वे अविभिनित भी होते हैं। मारात्मकता बहुत अधिक होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy