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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ८०३ ६. संकटार्बुद की वृद्धि कहीं कहीं इतनी अधिक हो जाती है कि उसकी रक्तपूर्ति को भी पीछे छोड़ जाती है जिसके कारण कई प्रकार के ऋणास्त्रण (infarction ) बन जाते हैं। ७. बहुधा संकट के साथ ऊतिमृत्यु या ऊतिनाश ( necrosis ), श्लेष्माभ ( mucoid ) अथवा श्लिषीय ( myxcmatous) मृद्वन ( softening ) अथवा वास्तविक तरलन ( liquefaction ) तक हो जा सकता है। ८. संकटार्बुद को सर्वाधिक संकटग्रस्त करने वाला है इसकी असंख्य तनुप्राचीरी रक्तवाहिनियों के द्वारा होने वाला रक्तस्राव । अण्वीक्षण अण्वीक्ष से देखने पर कर्कटार्बुद और संकटाबंद में अन्तर स्पष्टतः आता है जैसा कि अधिच्छद (इपीथीलियम) और संयोजी ऊति (कनैक्टिव टिशू) में होता है। कर्कट के कोशा समूहों में विभक्त रहते हैं और प्रत्येक कोशा समूह के बीच में संधार उन्हें पृथक् करता रहता है और यह संधार कर्कट के एक एक कोशा के बीच में कदापि नहीं आता । इस रचना को अवकाशिकीय रचना ( alveolar arrangement ) कहा जाता है । संकटाबंद में ऐसी अवकाशिकीय रचना नहीं पाई जाती। कोशा एक बराबर वितरित रहते हैं और प्रत्येक कोशा को संधार पृथक करता है। यह रचना अस्थि के संकट में बहुत स्पष्ट होती है परन्तु कहीं कहीं इतनी अस्पष्ट होती है कि अभिरंजन (staining) के विशिष्ट साधनों के प्रयोग से ही सिद्ध हो पाती है। जो कम अनभिनित संकटार्बुद होते हैं उनमें संधार बहुत सूक्ष्म और कठिनाई से पहचाना जा सकता है पर जो अधिक भिन्नित ( differentiated ) संकटार्बुद होते हैं उनमें संधार ( stroma ) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जैसा कि अस्थिसंकट ( osteosarcoma) में देखा जाता है जहाँ संकटकोशाओं के बीच में अस्थिति रहा करती है। सङ्कटार्बुद कोशाओं में मध्यस्तरकारी ( mesoblastic) लक्षण हुआ करते हैं । कर्कटकोशाओं की अपेक्षा इनके किनारे अधिक अस्पष्ट हुआ करते हैं। इनके कायाणुरस का विस्तार अन्तःकोशीय अन्तव्य बनता है । जहाँ कर्कट के कोशासमूहों के मध्य में स्थित संधार के अन्दर होकर रक्तवाहिनियाँ जाया करती हैं वहां असंख्य कोशाओं और स्रोताभों ( sinusoids ) के द्वारा सम्पूर्ण संकटार्बुद वेधित किया जाता है । इस कारण कर्कट में ऊतिनाश की अधिक सम्भावना रहा करती है क्योंकि रक्तवाहिनियों की वृद्धि से कहीं अधिक द्रुतगति से कर्कटकोशाओं की वृद्धि होती है। रक्तवाहिनियों के ढाँचे पर संकटार्बुद विस्तृत होता हुआ चला जाता है इस कारण यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि यहाँ भी रक्तस्त्राव बहुधा देखने को मिलता है। योज्यूतिकर ( संयोजी ऊति द्वारा बने-mesenchymal ) अर्बुदों में सूत्रिभाजनांक ( mitotic figures ) की जितनी महत्ता है उतनी कर्कटों में नहीं। प्रपाकित अधिचर्म में सूत्रिभाजनात (विभजनाङ्क) प्रायः देखे जा सकते हैं। तन्तुरुह, For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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