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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६२ विकृतिविज्ञान इसमें कोशाओं के विषम या अनियमित स्तम्भ देखने में आते हैं तथा यकृत्खण्डिका की स्वाभाविक रचना नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है । यकृद्दाल्युत्कर्ष के कारण यकृत् में मिलने वाले ग्रन्थकों को भ्रमवश कभी-कभी ग्रन्थ्यर्बुद समझ लिया जा सकता है जो अनुचित है। ६-आमाशयस्थ ग्रन्ध्य र्बुद ( Adenoma of the Stomach ) आमाशयिक श्लेष्मलकला के धरातल पर अनेक पुर्वगकीय वृद्धियाँ देखी जाया करती हैं। इन्हें बहुविध ग्रन्थ्यर्बुद ( multiple adenomata) या प्रसर आमाशयिक पुर्वंगकोत्कर्ष ( diffuse gastric polyposis) कहा जाता है। इसमें मृदुल पुर्वंगकीय पुंज या तो समूहों में या कला के धरातल पर इतस्ततः देखे जाते हैं। अण्वीक्षण करने पर ये ग्रन्थ्यर्बुदीय रचना स्पष्टतः सिद्ध होती हैं। कभी-कभी उनमें से एकाध कर्कट रूपी भी हो जाता है। ग्रन्थ्यर्बुद के कारण बहुत अधिक रक्तक्षय (anaemia) तथा आमाशयिक अनम्लता (achyliagastrica) मिलती है। ग्रन्थिपेश्यर्बुद ( adenomyoma )-आमाशय के मुद्रिकाद्वार के समीप या कभी-कभी क्षुद्रान्त्र में यह अर्बुद पाया जा सकता है। आमाशय में यह एक स्थानिक पीतवर्गीय पिण्ड के रूप में देखा जाता है और इसे देखकर आमाशयिक कर्कट का सन्देह हो सकता है। इसमें मुद्रिकाद्वारीय या ग्रहणीक ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। साथ में सर्वकिण्वीय ऊति लगी रहती है जिसके चारों ओर अनैच्छिक पेश्यावरण रहता है। इस रोग का इसलिए भी कुछ महत्त्व है कि इसके कारण आमाशयिक रोग लक्षण देखे जा सकते हैं। ७-लैङ्गरहैन्स द्वीपीय ग्रन्थ्य र्बुद (Adenoma of the Islets of Langerhans यद्यपि लैङ्गारहैन्सद्वीपिकाओं (सर्वकिण्विीयअन्तरालितउतीय क्षेत्रों ) में अर्बुदोत्पत्ति बहुत कम होती है परन्तु जब होती है तो ग्रन्थ्यर्बुद बहुधा देखा जाता है। जब द्वीपों में विशिष्ट कणों ( specific granules ) की उपस्थिति पाई जाती है और उनके अन्दर मधुवशि ( insulin ) को उपस्थिति पाई जाती है तो उस दशा को ग्रन्थ्यर्बुद संज्ञा दी जाती है। होम्स आदि का कथन है कि ये विक्षत ग्रन्थ्यर्बुद न होकर अङ्गविस्थानन ( heterotopia) मात्र हैं क्योंकि उनमें कभी प्रणालिकीय रचना देखी जाती है, कभी प्रावर का अभाव रहता है तथा वृद्धि का आक्रामक रूप नहीं देखा जाता । कभी-कभी एक स्थानिक ग्रन्थ्यर्बुद के स्थान पर द्वीपिकीय उति की प्रसर परम पुष्टि सम्पूर्ण सर्वकिण्वी में देखने में आती है। ___ इस रोग में मधुवशि की उत्पत्ति अत्यधिक होने के कारण परममधुवशिता (hyper insulinism) तथा उपमधुरक्तता ( hypoglycaemia) के लक्षण देखने में आते हैं। भोजन के पश्चात् यदि देर तक पुनः भोजन न मिले तो मधुवशि की प्रचुरता के कारण मूर्छा आ सकती है जो शर्करा के उपयोग से हटाई जा सकती है। यहाँ वास्तव में मधुमेह का विलोम होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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