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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६६ विकृतिविज्ञान प्रदेश के जितने ही समीप होता है उतनी ही उत्तरजात वृद्धियाँ उदर में पाई जाती हैं । इस दृष्टि से जो कर्कट स्तन के आन्तरार्द्ध ( inner half ) में होते हैं वे साध्यासाध्यता की दृष्टि से बाह्याई के कर्कटों से अधिक गम्भीर होते हैं। अस्थियों में उत्तरजात कर्कट इस रोग में प्रायः मिलते हैं । अस्थियों में वक्ष के समीप की जैसे पर्शक, उरःफलक और कशेरुका महत्त्वपूर्ण हैं। ये ही पहले प्रभावित होती हैं इसके पश्चात् दूरस्थ अस्थियों पर प्रभाव पड़ता है। यदि रक्तधारा द्वारा अस्थियों में कर्कट का गमन हुआ होता तो अस्थि की पोषिका रक्तवाहिनी के पास ही विस्थाय बनता जैसा कि नहीं देखा जाता, इससे ज्ञात होता है कि विस्थाय का कारण लसधारा है ऐसा हैण्डले का मत है। स्तन में स्थित लसवहा स्नेहाक्त प्रावरणी ( fatty fascia) तक त्वचा के नीचे जाती हैं। यह स्तर बहुत गम्भीर रूप धारण करता है क्योंकि कर्कट कोशाओं का प्रसार इसमें अत्यधिक होता है। अतः स्तनकर्कट का उच्छेद करते समय इसका भी पर्याप्त उच्छेद कर देना आवश्यक होता है। स्तन कर्कट की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो प्रयोग किये गये हैं उनसे तीन मुख्य हेतुओं का ज्ञान होता है : (१) स्तन प्रणालियों में अपर्याप्त उत्सारण (drainage ), जिसके कारण स्तन्य का रुकना तथा सड़ना (एडेयरादि)। (२) बीजकोषों का विषम वा अनृजु उत्तेजन (लैकासेग्ने आदि), तथा (३) मातृ दुग्ध के साथ प्राप्त मातृज प्रभाव (बिटनर) वक्षीय दुग्धोत्सारण क्रिया में बाधा स्तनस्थ प्रणालियों (ducts ) में गड़बड़ होने पर पड़ती है। जैसे प्रणाली में विशल्कित कोशाओं का समूह उत्पन्न होकर रोक लगा सकता है। प्रायः स्तन कर्कटोत्पत्ति उन स्त्रियों में अधिक होती है जिनको कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ होता क्योंकि उनके स्तन अपुष्ट, छोटे, कड़े, तन्वित ( fibrosed ) कर्कट के लिए सुखदायक शैया का कार्य करते हैं। एडेयर का कथन है कि कर्कट केवल ८.५ प्रतिशत प्रजावती स्त्रियों में पाया जाता है। बैग ने एक ऐसे वर्ग के चूहे की स्तन प्रणालियों को बाँध दिया जिसमें कर्कट बहुत कम होता था। यह कार्य उसकी सगर्भता का आधा काल बीतने पर किया था और उसने देखा कि उसे स्तनकर्कट हो गया। उसने चूहों में द्रुत गति से कई बार गर्भावस्था उत्पन्न करके तथा स्तनपान रोक कर कर्कटोत्पत्ति की। संसार में गाय के स्तन सर्वाधिक श्रम करते हैं और उसको कभी स्तनकर्कट नहीं देखा जाता। यह प्रकट करता है कि स्तन प्रणालिकाओं में कोई बाधा न पड़े और स्तन्य का प्रवाह निरन्तर चलता रहे तो कर्कटोत्पत्ति नहीं होती। इसके विपरीत यदि स्तन्य प्रणालिकाओं में रुक गया तथा सड़ गया तो कर्कटोत्पत्ति की सम्भावना हो जाती है। इसी कारण अप्रसवाओं में या जो माता अपने बच्चों को दुग्धपान नहीं कराती या जिनके स्तनों में बहुत अधिक विद्रधियाँ उत्पन्न होती रहती हैं उन्हें स्तनकर्कट का शिकार होना पड़ता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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