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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण पर्याप्त पाया जाता है। दूसरा वह जो जीवितक ( parenchyma) में होता है वह द्रुतगति से वृद्धि करता है और प्रसर होता है। ___ अश्मोपम कर्कट सर्वकिण्वीय प्रणाली या प्रणालियों से निकलता है। यह बहुत करके बनता है। कर्कट देखने में छोटा परन्तु पत्थर जैसा कठिन होता है। यह सदैव. सर्वकिण्वी के शीर्ष में स्थित रहता है इस कारण यह पित्तप्रणाली का अवरोध अवश्य करता है। अर्बुद सघन संधार के कारण पित्तप्रणाली संपीड़ित हो जाती है या कर्कट के कोशा इसका अपरदन करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं । कुछ भी हो गहरा कामला ऐसा जो किसी भी अन्य रोग में संभव नहीं, यहाँ रोगी में देखने में आता है। अवरोधात्मक पैत्तिक यकृद्दाल्यूत्कर्ष (obstructive biliary cirrhosis ) की उत्पत्ति से पूर्व ही मृत्यु हो जाया करती है। इस रोग में पित्ताशय बहुत अधिक विस्फारित हो जाता है तथा समस्त पित्तवाहिनियों में भी खूब विस्फार होता है । इस अवस्था को उद्यकृदुत्कर्ष ( hydrohepatosis) कहते हैं। इस रोग का परिणाम जलोदर में भी होता है। इसका विस्तार उदरगुहा तक ही सीमित रहता है। यकृत् पर प्रायशः प्रभाव हो जाता है तथा उदरच्छद में प्रसरग्रन्थकीय कर्कटोत्कर्ष ( diffuse nodular carcinosis) होकर जलोदर बनता है। ___जीवितकीय कर्कट अपने औतिकीय रूपों में बहुत भिन्न हुआ करता है। कभी प्रन्थिकर्कट मिलता है जिसमें गर्तकीय विन्यास ( acinar arrangement ) होता है या कोई भी विन्यास नहीं मिलता। अश्मोपम कर्कट की अपेक्षा यह अर्बुद अधिक बड़ा और अधिक मृदुल होता है । इसमें विस्थापन खूब तथा स्वतन्त्रतापूर्वक होता है। पित्तप्रणाली साधारणी का अपरदन हो भी सकता है और नहीं भी। न होने पर कामला नहीं मिलता। इस कर्कट के कारण ग्रहणी प्राचीर प्रभावित हो जाती है और वहाँ एक मारात्मक व्रण बन सकता है जिससे डट कर रक्तस्राव होता है जिसके कारण रक्तक्षय और सरक्तमलता विशेष लक्षण यहाँ होते हैं। इस कारण इसे देख कर आमाशयिक कर्कट का भी भ्रम हो सकता है । (६) अवटुकाग्रन्थीय कर्कट ( Carcinoma of the Thyroid gland) अवटुका या गलग्रंथि में कल्पना से कहीं अधिक कर्कट पाया जाता है। गलगण्ड रोग होने के उपरान्त इसके होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। साधारण ग्रन्थ्यर्बुद होने पर उसमें अवटुकविषतोत्कर्ष ( thyrotoxicosis ) के लक्षण मिलने पर भी कर्कटोत्पत्ति हो सकती है। यह पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक पाया जाता है। जब मृदुल गलगण्ड ( goitre ) की वृद्धि अधिक द्रुतवेग से होने लगे तथा स्पर्श से वह अधिक कठिन होने लगे तो उसका कर्कटीकरण हुआ ऐसा समझा जा सकता है। परन्तु ऐसा परिवर्तन एक ग्रन्थिसम कोष्ट. (adenomatous cyst ) में रक्तस्राव होने पर भी देखा जा सकता है। गले में ६३, ६४ वि० For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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