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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२६ अर्बुद प्रकरण महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकती। कोशीयगुच्छों से कुछ तथ्य का पता लग सकता है या अक्षकास्थि के ऊपर स्थित एक लसग्रन्थक निकाल अण्वीक्ष में परीक्षण द्वारा कर्कटोपस्थिति की सिद्धता को प्रमाणित किया जा सकता है। एक्सरे चित्र से फुफ्फुसीय कर्कट का पता चल जाता है पर यदि उरस्तोय साथ में हुआ तो कर्कटीय छाया पूर्णतः छिप जा सकती है। इसलिये पहले जल का निर्हरण करके कुछ घण्टों बाद ही चित्र लेना चाहिए। अन्यथा पुनः वहाँ जल भर जायेगा। इस चित्र में कर्कट ही दिखाई दे ऐसा कोई नियम नहीं श्वसनकीय संकोच, हृदय की विच्युति, फुफ्फुसान्तरालीय लसग्रन्थियों की वृद्धि आदि भी मिल सकती है। पर जब फुफ्फुस में कोई उत्तरजात कर्कट होता है तो वह फुफ्फुसवृन्तयु से दूर होने से चित्र में स्पष्ट दिखलाई देता है । जब किसी श्वासनाल में कर्कट हो तो श्वासनालदर्शक द्वारा उसे प्रत्यक्ष किया जा सकता है। यह भूलना न चाहिए कि इस कर्कट के विस्थायों के कारण मस्तिष्क, यकृत् , अस्थिमज्जादि में कर्कट बन सकते हैं और उनके लक्षण मुख्य रूप ले सकते हैं। इस कारण मूल व्याधि फुफ्फुस कर्कट होने पर भी अन्य स्थलीय कर्कट को मुख्य मानने का भ्रम हो सकता है। (२) महास्रोतीय कर्कट ३-ओष्ठ कर्कट ( Epithelioma of the Lip ) ओष्ठ कर्कट बहुधा स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को तथा ऊपर के ओष्ठ के स्थान पर निचले ओष्ठ में बहुतायत के साथ देखा जाता है। अर्थात् स्त्रियों के ओष्ठों में कर्कट नहीं देखा जाता और न ऊपर के ओष्ठ में ही यह मिलता है। निचले ओष्ठ पर प्रक्षोभ अधिक होने की सम्भावना रहती है इस कारण से वहाँ यह अधिक देखा जा सकता है। पहले पहल रोग का आरम्भ ओष्ठ काठिन्य और ओष्ठ स्थौल्य (induration and thickening of the lip) के रूप में हुआ करता है। यदि वृद्धि ऊपरी तल पर हुई तो एक चमकील सम गाँठ बन जाती है जो नातिविलम्ब से व्रग के रूप में बदल जाती है। पर यदि वृद्धि कुछ गहराई में स्थित हुई तो ओष्ठकाठिन्य का ही आभास हुआ करता है और बहुत काल तक कोई व्रण देखने में नहीं आया करता। जब कभी व्रण बन जाता है तो उसकी आकृति गोभी के फूल के समान फैलती हुई होती है जिसके किनारे पर्याप्त मोटे पाये जाते हैं। अण्वीक्षण करने पर ओष्ठ कर्कट अधिचर्माभ कर्कट (epidermoid cancer) ज्ञात होता है। ओष्ठ के गहरे भागों में शल्कीयकोशा पुंज उत्पन्न होने लगते हैं जिनके कारण कभी कम और कभी अधिक कोशा कोटर ( cell nests) तथा कदर ( corns ) का निर्माण होता हुआ देखा जाता है। कर्कट प्रथम द्वितीय और For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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