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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७२२ विकृतिविज्ञान I स्वरयन्त्र में कर्कट होने का सर्वप्रथम लक्षण स्वरभङ्ग ( impairment of the voice ) हुआ करता है । गले में शूल होना तथा निगलने में कठिनाई ( dysphagia ) का होना ये दो लक्षण रोग के पर्याप्त बढ़ने पर प्रकट होते हैं । आरम्भ में स्वरयन्त्रीय कर्कट एक कठिन सिध्म के रूप में एक ओर की स्वरतन्त्री पर दिखलाई देता है । कभी कभी इसकी आकृति अंकुरार्बुद सरीखी भी होती है । आगे चल कर अर्बुद में व्रणन, दूषकता, ऊतिविनाश आदि मिलता है । स्वरयन्त्र में कर्कट होने पर और भले प्रकार जड़ जमा लेने पर कान की जड़ तक जाने वाला शूल, निगलन कृच्छ्रता, श्वासकृच्छ्रता ( dyspnoea ), दुर्गन्ध ( foetor ), रक्तस्राव ( haemorr hage ) आदि पर्याप्त देखे जाते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अण्वीक्ष से देखने पर स्वरयन्त्रीय अधिच्छद का अप्रारूपिक प्रगुणन ( atypical proliferation ) होता है जिससे तन्त्रियाँ तथा निग ( plugs ) बनते हैं जो लाक्षणिक अधिच्छदीय मुक्ताओं ( characteristic epithelial pearls ) का रूप ले लेते हैं । इस कर्कट के कारण फुफ्फुस विद्रधि अथवा निश्वास श्वसनक ( inhalation pneumonia ) हो सकता है । आयुर्वेद की दृष्टि से यह क्या हो सकता है यह कहना कठिन है वहाँ स्वरभेद के प्रकरण में जो असाध्य स्वरभेद के लक्षण दिये हैं वे कर्कटजनित स्वरभेद के लिए भी यथार्थ हो सकते हैं। -- क्षोणस्य वृद्धस्य कृशस्य वाऽपि चिरोत्थितो यश्च सहोपजातः । मेदस्विनः सर्वसमुद्भवश्च स्वरामयो यो न स सिद्धिमेति ॥ ( सु. उ. अ. ५३ ) क्षीण, वृद्ध वा दुर्बल व्यक्ति को पर्याप्त काल से स्वरयन्त्र के साथ उत्पन्न सब दोषों के अनुबन्ध से युक्त और साथ ही मेदसाधिक्य होने से जो स्वरभेद होता है वह सिद्ध नहीं हुआ करता । यह अन्तःस्वरयन्त्र कर्कट का ही वर्णन मालूम पड़ता है। बहिःस्वरयन्त्रकर्कट का वर्णन सुश्रुत निदान स्थान में मांसतान करके आया हैप्रतानवान् यः श्वयथुः सुकष्टो गलोपरोधं कुरुते क्रमेण । समांसतानः कथितोऽवलम्बी प्राणप्रणुत् सर्वकृतो विकारः ॥ ( सु. नि. अ. १६ ) विस्तारयुक्त, दुःखदायी जो शोथ धीरे धीरे गले का अवरोध करके नीचे को लटक जाता है, जो त्रिदोष से उत्पन्न होता है वह प्राणनाशक विकार है । २ - फुफ्फुस कर्कट ( Cancer of the Lung ) किस कारण से यह रोग होता है उसके बारे में विभिन्न लिखा मिलता है पर क्योंकि इस रोग का निदान ठीक ठीक है इसलिए किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता । हैं कि तारकोल की सड़कों के कारण तथा मोटर बस आदि के For Private and Personal Use Only पुस्तकों में बहुत कुछ अभी तक नहीं हो सका कुछ लोग ऐसा समझते अधिक चलने के कारण
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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