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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७०८ विकृतिविज्ञान बहुधा एक ही न्यष्टि होती है तथा वह परमवर्णिक ( hyperchromatic ) होती है परन्तु प्रायः दो या अधिक न्यष्टियाँ भी पाई जा सकती हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) ज्यों-ज्यों अर्बुद अधिक द्रुतगति से बढ़ता है तथा अप्रारूपिक ( atypical ) होता चला जाता है उसमें सूत्रिभाजनाङ्क ( mitotic figures ) अधिकाधिक मिलती चली जाती हैं। (६) कोशा सदैव समूहों या अवकाशिकाओं में रहते हैं । इनके बीच में संघार कदापि नहीं होता यद्यपि एक कोशासमूह दूसरे कोशासमूह से संघार द्वारा पृथक् किया हुआ रहता है | ( ७ ) साधारण अधिच्छीय अर्बुद के कोशाओं के साथ कर्कट के कोशाओं की तुलना करने पर यह ज्ञात होता है कि जहाँ साधारण अधिच्छदीयार्बुद के कोशा अपने स्थान में ही तथा प्रावरित रहते हैं कर्कट के कोशा अपनी अधस्तृत कला ( basement membrane ) को निच्छिद्रित ( perforate ) कर देते हैं तथा समीप की स्वस्थ ऊतियों में घुस जाते हैं । (८) ज्यों-ज्यों कोशाओं का विभिन्नन कम होता जाता है त्यों-त्यों उनका व्यक्तित्व कम होता जाता है और वे एक प्ररस के भक्षणशीलस्तार ( cytoplasmic syncitial sheet ) का रूप ले लेते हैं । कर्कटीय संधार की विशेषताओं का हम निम्नरूप समझ सकते हैं: ( १ ) भिन्न-भिन्न प्रकार के कर्कट में संधार की मात्रा पृथक्-पृथक् रहती है । ( २ ) जो कर्कट जितनी अधिक गति से बढ़ते हैं उनमें संधार की मात्रा उतनी ही कम पाई जाती है । 1 ( ३ ) संधार तान्तवऊति से बनता है । तान्तवऊति इस प्रकार विन्यस्त होती है कि वह अनेक आकार की अवकाशिकाएँ ( alveoli ) बना देती है जिनके भीतर कर्कटीय कोशासमूह रहते हैं । ( ४ ) संधार कर्कट कोशाओं के साथ न तो बहुत अधिक संलग्न होता है और न उनके बीच में से पार जाता है । ( ५ ) संधार में रक्तवाहिनियाँ रहती हैं संख्या में वे बहुत अधिक होती हैं और अवकाशिकाओं के चारों ओर एक बहुत हो निकट जाल बना लेती हैं, ये सदैव संधार तक ही सीमित रहती हैं तथा कभी भी कर्कट कोशाओं के बीच से पार नहीं होतीं, यह वाहिनीविन्यास इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसी से पार्थक्य का पता लगता है । कर्कट वा संकटार्बुद के ( ६ ) कर्कट जिस भाग में स्थित है उस भाग को जाने वाली रक्तवाहिनियाँ सदैव आकार में बढ़ी हो जाती हैं इनकी वृद्धि का स्पष्ट हेतु अभी तक गुप्त ही है । (७) संकटार्बुद की अपेक्षा कर्कट में रक्तवाहिनियाँ अधिक अच्छे प्रकार बना करती हैं क्योंकि कर्कट उतना कोटराभ ( sinusoidal ) नहीं होता जितना कार्बुद | For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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