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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - व्रणशोथ या शोफ (३) स्नैहिक विहास ( fatty degeneration ) (४) जीवितककोशामृत्यु ( necrosis of parenchymatous cell ) (५) शोथतरल द्वारा उतियों के अवकाशों में तनाव ( distension of tissue-spaces by oedema fluids ) (६) तन्त्विमय जालिका की उपस्थिति ( presence of a fibrinous __reticulum) (७) सितकोशाओं का अन्तराभरण (infiltration of the part by ___leucocytes ) तथा (८) पूयन एवं पूयकोशाओं की उपस्थिति । व्रणशोथ की अनुतीबावस्था-इसमें निम्न विशेषताएँ मिलती हैं:(१)तीवावस्था के सब लक्षण पर मृदुरूप में।। (२) तन्सुरुह प्रगुणन ( fibroblastic proliferation) (३) उपसिरज्य सितकोशाओं, अन्तच्छदीय एकन्यष्टिकोशाओं, लघुलसीकोशाओं तथा प्ररस कोशाओं की पर्याप्त मात्रा में उपस्थिति । (४) पूयन तथा पूयकोशाओं की उपस्थिति । व्रणशोथ को जीर्णावस्था-इसमें निम्न विशेषताएँ मिलती हैं:(१) तन्तूत्कर्ष ( fibrosis) (२) लसीकोशीय तथा प्ररसकोशीय अन्तराभरण ( infiltration of lym. phocytes & plasma. cells) (३) अभिलोपी अन्तर्धमनीपाक ( obliterative endarteritis ) (४) पूँयन तथा पूयकोशाओं की उपस्थिति । पूयन और पूयकोशाओं की उपस्थिति का लक्षण सभी अवस्थाओं में मिल सकता है अतः इसे देख कर अवस्था विशेष का पूर्ण बोध नहीं किया जासकता । प्रभावित ऊति का प्रकार-किस प्रकार की ऊति में व्रणशोथ हुआ है इस पर औतिकीय चित्र निर्भर रहता है। उदाहरण के लिए अस्थि एक ऐसी अति है जो अतिकठोर होती है इस कारण तीव्र व्रणशोथावस्था की सूजन अस्थि में आसानी से नहीं देखी जा सकती और जब सूजन बढ़ती है तो केशाल दब जाते हैं उसके कारण रक्त की पूर्ति न होने से अस्थि की मृत्यु (necrosis of the bone ) होजाती है और तीवावस्था में अस्थिमृत्यु देखी जाती है। तरुणास्थि प्रायः रक्तरहित ऊति होने से व्रणशोथ का इस पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। सर्वकिण्वी (पेंक्रियाज ) ग्रन्थि में व्रणशोथ होने से उसमें स्थित किण्वों ( ferments) की वृद्धि होने लगती है और ये किण्व उस ग्रन्थि का ही पाचन कर डालते हैं जिससे उसके बहुत से भाग की मृत्यु हो जाती है और स्नैहिक विहास के लक्षण मिलने लगते हैं। लस्यकोशाओं (sero. us cells ) में व्रणशोथ होने से लस्थावकाश में स्राव भर जाता है और सम्पूर्ण ३,४ वि० For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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