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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६४० विकृतिविज्ञान कुष्ट यह नाम क्यों पड़ा ? कुष्ठ यह नाम क्यों पड़ा इसका उत्तर देने के साथ साथ वाग्भट ने इतनी अन्य बातें और कह डाली हैं कि उनसे कुष्ठ के आधुनिक विचार को भी थोड़ा प्रकाश मिल जाता है । निदान के प्रकरण में वह लिखता है Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कालेनोपेक्षितं यस्मात्सर्वं कुष्णाति तद्वपुः । प्रपद्य धातून्व्याप्यान्तः सर्वान् संक्लेद्य चावहेत् ॥ सस्वेदक्लेदसंकोथान् कृमीन् सूक्ष्मान् सुदारुणान् । लोभ त्वक्स्नायुधमनी तरुणास्थीनि यैः क्रमात् ॥ भक्षयेच्छिवत्रमस्माच्च कुष्ठबाह्यमुदाहृतम् ॥ हेतु की अपेक्षा से समय पाकर वाग्भट जिससे सम्पूर्ण शरीर खिंच जाता है या फट जाता है उसे ही कुष्ठ कहते हैं । ( यस्माद्धेतोरुपेक्षितं - अनुपक्रान्तं सत्, कालेन सर्वं शरीरं कुष्णाति तस्मात्तत् कुष्ठ उच्यते ) । यह कुष्ठ सम्पूर्ण धातुओं में पहुँच कर फिर उनके अन्दर व्याप्त होकर सबको क्लेदित करके कृमि स्वेद, क्लेद और कोथ से सूक्ष्म दारुण कृमि उत्पन्न कर देता है जो लोम, स्वचा, स्नायु, धमनी और कास्थियों का भक्षण करते हैं । श्विन को कुष्ठबाह्य कहा जाता है क्योंकि उसमें विकार के बल स्वचागत होता है । । कुष्ठ का अर्थ फाड़ना, गलाना, खींचना है इसी कुष्ठ धातु से कुष्ठ बनता है जिसमें धातुएँ फटे, गले या खींची जावें । इस कुष्ठ का कारण आयुर्वेद ने दोषों को माना है । दोषों का दूष्यों पर अनिष्टकर प्रभाव होने से ही शरीर में दारुण कृमि या जीवाणु उत्पन्न होते हैं जो लोमादि का भक्षण करते और शरीर की धातुओं को गला देते हैं । परन्तु आधुनिक विद्वान् कहते हैं 'Leprosy is a specific infectious disease caused by M. Leprae of Hansen and characterised by the formation of granulomatous lesions of the skin, mucous membranes and nerve sheaths.' - डा. धीरेन्द्रनाथ बनर्जी अर्थात् कुष्ठ एक विशिष्ट औपसर्गिक रोग है जो हैनसन द्वारा खोजे गये माइको बैक्टीरियमलैप्री ( महाकुष्ठ कवकवेत्राणु ) के द्वारा उत्पन्न होने वाला रोग है जिसमें त्वचा, श्लेष्मलकला तथा वातनाडी कंचुकों में कणनीयार्बुदीय विक्षत बन जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि रोग की उत्पत्ति आधुनिक विद्वान् उन सूक्ष्मान् सुदारुणान् कृमीन को ही लेते हैं और उन्हें माइको बैक्टीरियम लेप्री सम्बोधित करते हैं । इसी लैमा या लैप्री से ही लैप्रसी शब्द निकाला है जिसका अर्थ कुष्ठ लिया जाता है । च, लैटिन और ग्रीक भाषा में लैप्रा या लैप्रोस का अर्थ ( छिलका ) होता है वह रोग जिससे छिलके की तरह खाल उतरने लगे वह लैप्रोसी कहलाता है । शल्क 'कुष्ठ' शब्द आयुर्वेद में लगभग सम्पूर्ण त्वचागत रोगों के लिए आज प्रयुक्त होता है वैसे ही लैप्रोसी भी प्रयुक्त होता था । चैम्बर्स कोष में लैप्रोसी का अर्थ एक ऐसा For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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