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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३० विकृतिविज्ञान पञ्चम कटिखण्ड और प्रथम त्रिकखण्ड पर निर्भर रहता है। इनका महत्त्व निदान की दृष्टि से बहुत अधिक है। पश्चकाय नामक रोग का एक प्रमुख लक्षण होता है नेत्रतारक के प्रकाश प्रतिक्षेप का नाश ( loss of the light reflex in the pupil ) परन्तु चलाक्षभुजायन पर तारक संकोच का स्थित रहना ( retention of contraction of pupil on accomodation )। इस लक्षण को सन् १८६९ ई० में एडिनबरा के आर्जिल राबर्टसन ने सर्वप्रथम लिखा था और तब से इसे आर्जिल राबर्टसन तारक ( Argyll robertson pupil ) कहते हैं। यह क्यों होता है इसके सम्बन्ध में आधुनिक खोजों से बहुत ज्ञान मिला है। नेत्रतारक के प्रतिक्षेप का केन्द्र नेत्रचेष्टनी नाडी ( oculo motor nerve) हुआ करता है परन्तु इसकी न्यष्टि या कन्दिका ( nucleus ) जो मध्यमस्तिष्क में रहती है का पश्चकार्य या प्रचलनासंगति नामक रोग में कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अर्जिल राबर्टसन तारक का एक महत्त्व का लक्षण यह भी होता है कि ऋजु प्रथम स्वायत्तिक वलिकाय सौपुम्निक प्रतिक्षेप ( normal sympathetic cilio spinal reflex ) समाप्त हो जाता है अर्थात् त्वचा में कहीं नोचने से तारक विस्फारित हो जाता है। यह स्पष्ट है कि कृष्णमण्डल को दो पृथक मार्ग जाते हैं। एक तो प्रकाश प्रतिक्षेप तन्तु मूर्तिपट ( retina) से होकर उपरिका कालायिका (superior quadrigeminal body ) में होता हुआ तृतीया नेत्रचेष्टनी नाडी की न्यष्टि जो मध्यमस्तिष्क में जाता है। यह मूर्तिपट के दृष्टिसूत्रों ( visual fibres ) से पृथक होता है। दूसरे प्रथम स्वायत्तिक ( sympathetic ) तारकविस्फारक तन्तुकन्दाधरिक भाग के पश्चभाग से निकलते (pupillodilator fidres which arise from the posterior part of the hypothalmus ) हैं और मध्यम मस्तिष्क को जाते हैं जहाँ से वे प्रैविक प्रथम स्वायत्त नाडी केन्द्र ( cervical sympathetic centre ) को जाते हैं। ये दोनों वातनाडीमार्ग ब्रह्मद्वार सुरंगा (aqueduct of sylvius ) में बिल्कुल पास पास सटे हुए रहते हैं। इस कारण जब इस सुरंगा में कोई विक्षत बन जाता है तो दोनों मार्गों पर प्रभाव डाल सकता है तथा शुद्ध आर्जिल रोबर्टसनतारक उत्पन्न कर सकता है। यह विक्षत सदैव फिरंग जनित ही होता है। जब कभी मध्यमस्तिष्क में कोई वातश्लेपार्बुद (glioma ) उत्पन्न हो जाता है तो इन दोनों वातनाडी मार्गों पर प्रभाव डालकर इसी रोग को नेत्रतारक में उत्पन्न कर सकता है। अन्य अनेक कारणों से भी नेत्रतारक का प्रकाश प्रतिक्षेप ( light reflex ) प्रभावित हो सकता है परन्तु वह वास्तविक आर्जिल रोबर्टसनतारक नामक रोग नहीं बना सकते। पेशीतान का अभाव ( loss of muscle tone ) उन संवेदनावह सूत्रों की अनुपस्थिति के कारण हुआ करता है जिनका सम्बन्ध अग्रशृङ्गों के साथ होता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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